रिमझिम बरसकर सावन
मन में जगाती अगन ,
बैठी है मिलने की आस लिए
पर नहीं आये बेदर्दी साजन |
बादल आये , आकर चले गए
ना ही पिया का कोई सन्देश लाये ,
रूककर यहाँ कुछ तो बतियाते,
उनके लिए मेरे सन्देश ले जाते ......
मैं बताती कैसे मेरे दिन बीते
विरह का अगन का अहसास कराते
पलकों ही पलकों में कटती है रातें
याद में उनके दिन बीत जाते
उनको पहुँचा देती यह प्रश्न मेरे
“बे रुखी क्यों इतना साजन मेरे ?”
कभी सोचती गर पंख होता
उड़कर जाती चिड़िया जैसा
नहीं तड़पती विरह के ज्वाला में
कष्ट ना झेलती चकोर जैसा |
कभी सोचती हूँ बादल बन जाऊं
हवा के साथ साठ उड़ती जाऊं
दिल में लिए अभिमान का बादल
जमकर बरसू पिया के ऊपर |
पर मैं चाहुँ दिल से यही
परदेशी पिया घर लौट आये
लेकर दिल में प्यार का सागर
उस सागर में मुझे डुबो जाये |
कालिपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
नायिका के मन के उद्गारों को बड़ी खूबसूरती के साथ अभिव्यक्त किया है ! सुंदर रचना !
ReplyDeleteसुंदर रचना ,सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबढ़िया रचना व लेखन , आदरणीय धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-07-2014) को "संघर्ष का कथानक:जीवन का उद्देश्य" (चर्चा मंच-1687) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका हार्दिक आभार शास्त्री जी !
Deleteबेहद मार्मिक sir
ReplyDeleteकास हम भी बादल बन पाते.......
जाने क्या क्या कर जाता है ये मुआ सावन ...
ReplyDeleteमन के भाव खूबसूरती से उतारे हैं ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeletesundar abhivyakti
ReplyDeleteबारिश और विरह का सुन्दर वर्णन
ReplyDeleteसादर !
विरह श्रृंगार का रस लिए हुए सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteप्यार से सरोबार विरह गीत ...
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