Monday 13 November 2017

ग़ज़ल

ये जिंदगी तो’ हो गयी’ दूभर कहे बग़ैर
आता सदा वही बुरा’ अवसर कहे बग़ैर |
बलमा नहीं गया कभी’ बाहर कहे बग़ैर
आता कभी नहीं यहाँ’, जाकर कहे बग़ैर |
है धर्म कर्म शील सभी व्यक्ति जागरूक
दिन रात परिक्रमा करे’ दिनकर कहे बग़ैर |
दुर्बल का’ क़र्ज़ मुक्ति सभी होनी’ चाहिए
क्यों ले ज़मीनदार सभी कर कहे बग़ैर |
सब धर्म पालते मे’रे’ साजन, मगर है’ दूर
आकर गए तमाम निभाकर, कहे बग़ैर |
मिलने में’ थी हँसी ख़ुशी’ अब चैन भी नहीं
सुख चैन ले गए वो’ चुराकर कहे बग़ैर |
चौकस रहो सदा सभी’, गलती न कर कभी
बैरी चलाते’ विष बुझी’ नस्तर कहे बग़ैर |
जीवन सदैव धन्य हो’ चौकस विवेक हो
आती विपत्तियाँ सभी’ अक्सर कहे बग़ैर |
ये ज़िंदगी है’ चार दिनों की, अधिक नहीं
जाते सभी ‘प्रसाद’ रुलाकर कहे बग़ैर |
कालीपद 'प्रसाद'

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