Wednesday 9 September 2020

 गयी जब छोड़ मुझको, मैं ढुकास रहता हूँ

प्रिया की याद में दिनभर उदास रहता हूँ |
भ्रमित तो मैं नहीं हूँ, धारणा यही मेरी
लगे मुझको हमेशा यह, कि पास रहता हूँ |
कभी सोचूं यहीं है वो, कभी दिगर बातें
दिमागी तौर से मैं बदहवास रहता हूँ |
नहीं मैं जानता ईश्वर कहाँ किधर रहते
समझता हूँ कि रब के आसपास रहता हूँ |
नहीं जाना कि पूजा क्या है’, आरती देखा
इबादत में हमेशा भक्तदास रहता हूँ |
महामारी प्रकोप ऐसी, कि त्रस्त है दुनिया
कभी बाहर नहीं अपने निवास रहता हूँ |
करूँ क्या अब घरों में बैठ सर्वदा ‘काली’
समझ में कुछ नहीं, बस भव-विलास रहता हूँ |
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शब्दार्थ :- ढुकास=तीव्र प्यासा
बदहवास=बौखलाया,
भव-विलास= सांसारिक सुखों के भोग के निमित्त
की जाने वाली क्रियाओं में मस्त |
कालीपद 'प्रसाद'

Thursday 27 February 2020

कविता -दिल्ली क्यों जला रहा है ?

दिल्ली क्यों जल रहा है ? छुपके चुपके खामोश षड़यंत्र रचा जा रहां है, तिल-तिल आहत संविधान हिंसा द्वेष से प्रजातंत्र जल रहा है | प्रजा हित प्रमुख है या शासक का दम्भ ? यही ला रहा है धीरे से शांत समाज में भूकंप | शासन के लिए बहुमत अवश्य जरुरी है, सुशासन के लिए सशक्त विपक्ष भी जरुरी है | विपक्ष ही निरंकुश, झक्की शासक का अंकुश है, भोली-भाली जनता को आगे इसको समझना है | हर घर का एक वोट पक्ष में दुसरा वोट पड़े विपक्ष में, तभी प्रजा की हित होगी देश रहेगा सलामत में | निरंकुशता का फल आपातकाल या तानाशाही, भारत भुगत चुका आपातकाल और एकल राजशाही | धर्म, जाति, वर्ण के आढ़ में और खेल न खेलो, बदल गया है युग, यह कलि सच्चा विकास करो, देश संभालो | कालीपद 'प्रसाद'