नयन से’ तीर चलाये
उसे अदा कहिये
विपत्ति से जो’ बचाए
तो’ बावफा कहिये |
कहूँ सचाई’ तो’ कहते
अभी नया कहिये
जो’ दोष और में’ है
उनमे’ भी है’, क्या कहिये |
तृतीय बार जो’ घातक
विश्व युद्ध होगा
बचे अगर तभी’ ईश्वर
को मरहबा कहिये |
निगाह से कभी’ जाने
नहीं दिया बाहर
सनम के प्यार का
बंधन नहीं, सज़ा कहिये |
रखे रही मुझे’ पल्लू
से’ बाँध कर उसने
तमाम जीस्त के’ बंधन
नहीं, क़ज़ा कहिये |
कही जो’ बात मुहब्बत
भरी, कहूँ क्या मैं
मुसीबतों में’ मिला
हौसला, दवा कहिये |
घडी घडी जो’ उलट फेर
बारहा करते
‘मुसीबतों में’ गधा
बाप’ फलसफा कहिये |
कालीपद 'प्रसाद'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-06-2018) को "मौसम में बदलाव" (चर्चा अंक-2999) (चर्चा अंक-2985) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर रचना !
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