क्या कहूँ कुछ सूझता
नहीं ,काल-कर्कट है बड़ा क्रूर
तुड़वा दिया कसम
हमारी ,कर दिया तुमको मुझ से दूर|
खाए थे कसम हमने
मिलकर ,साथ रहेंगे जिंदगी भर
तुम हो कहीं पर ,मैं
हूँ कहीं ,हो गए हम लाचार मजबूर |
हवा करती शोरगुल जब
,पत्तों का होता है सर- सराहट
लगता है यहीं कहीं
पास में हो तुम,नहीं हो हमसे दूर |
रजनी-गंधा रजनी भर
जगकर, बिखेरती जब अपनी महक
मन-कोयल मेरा चाहता
है गाना,पर गायब है उसका सुर |
बादल के काले
घुंघराले बाल ,ज्यों उड़ते फिरते आस्मां में |
लगता है तुम उड़ रही
हो ,उड़ रहे हैं तुम्हारे काले चिकुर |
लड़ना झगड़ना ,चुप
रहना, फिर बोलना याद आ रही है
अंतिम क्षण तक तेरी
याद,दिल को मेरे बेक़रार करेगी जरुर |
कालीपद "प्रसाद"
© सर्वाधिकार सुरक्षित
behatreen prastuti
ReplyDeletebehatreen prastuti
ReplyDeletemarmik .....
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को शनिवार, २० जून, २०१५ की बुलेटिन - "प्यार, साथ और अपनापन" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
ReplyDeleteआपका आभार तुषार रस्तोगी जी !
Deleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कोमल भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteसुंदर भाव !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-06-2015) को "योगसाधना-तन, मन, आत्मा का शोधन" {चर्चा - 2013} पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
अन्तर्राष्ट्रीय योगदिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
हार्दिक आभार डॉ रूप चन्द्र शास्त्री जी !
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रेम औए विरह के रंग में लिखी भावपूर्ण याचना ...
ReplyDeletebahut sunder yadon ke bandhan me bandhi rachana ..
ReplyDeleteबहुत खूब !
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
www.manojbijnori12.blogspot.com