मौन हूँ, इसीलिए नहीं
कि मेरे पास शब्द नहीं...
मौन हूँ, क्योंकि जीवन में मेरे
हर शब्द का अर्थ बदल गया है |
वक्त के पहले वक्त ने
करवट बदल लिया है,
वसंत के स्वच्छ आकाश में
काले बादल छा गया है,
भरी दोपहरी में, चमकते सूरज में
ज्यों ग्रहण लग आया है |
मौन हूँ, पर नि:शब्द नहीं
घायल हूँ, पर नि:शस्त्र, पराजित नहीं
दुखी हूँ , पर निराश नहीं |
आशा, विश्वास शस्त्र हैं मेरे
‘काल’ से भी अधिक बलवान,
काटेगा हर अस्त्र ‘काल’ का
मेरे ये अमोघ वाण |
‘काल’ नहीं रह पायगा स्थिर
सदा इस हाल में मेरे दर पर
‘काल’ ही पहनायगा विजय मुकुट
खुश होकर मेरे सर पर |
कालीपद ‘प्रसाद’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
बहुत ही सुन्दर सशक्त एवं सार्थक सृजन ! इतनी सुन्दर रचना के लिये बधाई आपको !
ReplyDeleteआभार साधना वैद जी !
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-11-2015) को "छठ पर्व की उपासना" (चर्चा-अंक 2163) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार डॉ रूपचंद्र शास्त्री जी !
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपका आभार प्रतिभा जी
Deleteबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeleteआपका आभार कैलाश शर्मा जी !
Deleteआपका आभार
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
बहुत ही उम्दा लेखन। अच्छी रचना की प्रस्तुति।
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति, बधाई.
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ReplyDeleteकाल से लोहा लेना वाले ही उसे परास्त करने का माद्दा रखते हैं ..
बहुत सुन्दर
https://www.technicalrab.com/2020/05/weather-today-cheak-weather-today.html?m=1
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