जहाज़ चाहिए’ तूफानी’
बेकराँ^ के लिए
विशिष्ट गुण सभी, जी
एस* इम्तिहाँ के लिए|
है’ कायदा यहाँ धरती
के’ आदमी वास्ते
नहीं नियम को’ई’ भी
जंद आसमाँ के लिए |
अवाम डरते’ थे’ तब
लाल आँख को देखकर
समाप्त डर हुआ
मिज़्गाँ-ए-खूँशियाँ@ के लिए |
महुष्य जाति यहाँ,
आते’ चार दिन वास्ते
न राम कृष्ण बने
उम्रे जाविदाँ # के लिए |
यहीं पले यहीं खाते
स्तवन करे पाक की
सज़ा क्या’ इन छली
गद्दार राजदाँ के लिए |
शब्दार्थ : बेकराँ=
कुल किनारा हीन समुद्र
जी एस= GST
मिज़्गाँ-ए-खूँशियाँ@=
रक्त रंजित लाल पलकें
उम्रे
जाविदां#=शाश्वत जीवन
जंद =बड़ा,विशाल,महानकालीपद 'प्रसाद'
बहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
शुक्रिया ताऊ रामपुरिया जी
Deleteवाह ! एक क्रांति की आग दिखती है आपकी रचना में सुन्दर ,आभार। "एकलव्य "
ReplyDeleteशुक्रिया ध्रुव सिंह जी
DeleteNice
ReplyDeletePls do visit my blog too for feedback
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