हर धर्म यही कहता है
हर जीव में एक आत्मा है ,
परमात्मा का वह छोटा रूप है
आदिकाल से यही विश्वास है,
किन्तु आजतक किसी ने भी
ना परमात्मा, ना आत्मा को देखा है।
विचार में ,चिंतन में यह हमेशा रहता है
कहीं यह किसी दार्शनिक या चिंताविद की
कल्पना की उपज तो नहीं है ?
दिल हमेशा उसके भय से घबराता है
जिसको हम परमात्मा कहते है।
यदि मैं उसका अंश आत्मा हूँ ...
तो फिर मैं परमात्मा से क्यों घबराता हूँ?
वैज्ञानिक भी खोज में हैं उस "ईश्वरीय कण "की
जानना चाहता है कारण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति की,
कब ,कैसे हुआ शुरुयात ?
इसके मूल में क्या है ?
कोई शक्ति या कोई व्यक्ति है ?
महा मशीन क्या जान पायेगा ?
प्रक्रति का रहस्य क्या खोल पायेगा ?
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आस्तिक के मनमें एक जिज्ञासा है ,
मानकर अस्तित्व ईश्वर की वह पूछता है ..........
हे ईश्वर ! यदि कहीं किसी रूप में तुम हो
ये विश्व ब्रह्माण्ड तुम्हारा है ,फिर तुम क्यों छुपे हो?
भक्त पुकारे तुम्हे अहरह होकर विह्वल
दर्शन पाने तुम्हारे ,माला जप रहे हैं अविरल।
जानता हूँ मर्जी तुम्हारी ,नहीं चाहते देना तुम दर्शन
भक्तों की आस्था ना डोले ,उपाय करो कुछ हे सुदर्शन!
सामने ना आओ ना सही , इतना करो कृपा दान
ऐसा कुछ करो जो हो, तुम्हारे होने का अकाट्य प्रमाण।
यदि तुम समझते हो ,आवश्यकता नहीं कोई प्रमाण की
भक्तों को कैसे विश्वास होगा तुम्हारे अस्तित्व की ?
कोरी कल्पना में आदिकाल से धोखा खा रहे हैं
धूर्त धर्म के धंधेबाज ,भोली भाली भक्तों को लुट रहे हैं।
धूर्तों की हो रही है जय जय कार
भक्तो में फैला है हा हा कार।
सोच रहा हूँ ,समझ रहा हूँ ,
तुम कोई व्यक्ति तो नहीं हो सकते
व्यक्ति का एक स्थूल रूप होता है ,
तुम शक्ति जरुर हो सकते हो ,
शक्ति शुक्ष्म और अदृश्य होता है,
केवल उसका अनुभव किया जा सकता है।
अगर शक्ति हो ,तो
ना तुम सुन सकते हो
ना तुम देख सक्तो हो
ना अनुभव कर सकते हो
केवल स्थूल में प्रवाहित हो सकते हो
उस पर बल का प्रयोग कर सकते हो।
फिर तुम क्या विजली हो ? वायु हो ?या ऊष्मा हो ?
हाँ तुम इनमे से कुछ हो
इनके ना नाक है, ना कान है, ना आँख है ,
तुम्हारे भी कोई नाक ,कान ,आँख ,दिल नहीं है,
इसीलिए भक्तों की पीड़ा तुम्हे दिखाई नहीं देती
उनकी क्रंदन तुम्हे सुनाई नहीं देती
उनकी भक्ति का सौरभ तुम्हे द्रवित नहीं करता
उनके कष्टों का तुम्हे एहसास नहीं होता।
तुम तो अपने नियमों से बंधे हो
अपनी प्रवाह को गति देतो हो
चाहे उसमें जीवन का संचार हो
या पूरी श्रृष्टि का संहार हो
तुम नियमों का अतिक्रम नही करते हो।
तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा ....,यदि हम तम्हे जान जाय....
उत्तर दो
तुम कौन हो ?
कालीपद "प्रसाद"
©सर्वाधिकार सुरक्षित
एक समय आता है जब ऐसी जिज्ञासा स्वाभाविक रूप से उठती हैं, जिज्ञासा का उठना ही पहला कदम है, उसको कौन जान पाया है? जिसने उसे जान लिया वो स्वयं ही वो हो गया. बहुत ही सुंदर रचना.
ReplyDeleteरामराम.
जबाब मेरे पास भी नहीं
ReplyDeleteइसलिए इसे औरों के पास पहुंचा दे रही हूँ
मंगलवार 02/07/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....
आपके सुझावों का स्वागत है ....
धन्यवाद !!
आभार विभारानी जी !
Deleteविचारपरक रचना ............ पर उसका भेद कौन जान पाया है …जो जान गया तो क्या दुनिया से उसने मान पाया है
ReplyDeleteजो दिखता है, वही छलता है। न दिखे और न छले, आत्मीय और आत्मासम।
ReplyDeleteसमय ही ऐसा है कि हर एक के मन में यह सवाल उठ रहा है...
ReplyDeleteदिल हमेशा उसके भय से घबराता है
ReplyDeleteजिसको हम परमात्मा कहते है।
यदि मैं उसका अंश आत्मा हूँ ...
तो फिर मैं परमात्मा से क्यों घबराता हूँ?
vicharniy prastuti .nice presentation .
आपकी यह रचना कल मंगलवार (25 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteआभार अनंत शर्मा जी !
Deletebahut hi prabhavshali rachana bilkul samyik chintan .......kuchh aisa hi chintan mera bhi mere blog pr aamntran sweekaren sir ji .
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २५ /६ /१३ को चर्चा मंच में राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
ReplyDeleteआभार राजेश कुमारी जी !
Deleteविज्ञान की कसौटी पर दर्शन को समझने का अदभुत प्रयास इन कविताओं में.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया,उत्कृष्ट प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRecent post: एक हमसफर चाहिए.
बे।हद भाई ये रचना । पर परमात्मा पर तो विश्वास ही रखना होता है इतना अटूट कि किसी आपदा से न डिगे
ReplyDeleteयह जिज्ञासा जीवन भर चलती है और कुदरत इसे रहस्य बनाये रखने में कामयाब है !
ReplyDeleteसदियों से मन में उठ रही इस जिज्ञासा का कोई अंत नहीं है ...बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteउत्क्रुस्त , भावपूर्ण एवं सार्थक अभिव्यक्ति .
ReplyDelete---अच्छे प्रश्न है ...यक्ष प्रश्न ....
ReplyDeleteब्रह्म लख्यो औ पुराण पढ़े, गीता पढी औ पढी रामायन |
काव्य रचे बहु शास्त्र गुने औ वेद ऋचा सुनी चौगुनी चायन|
पायो कबहु काहू न कितहू वो कैसो सरूप औ कैसो सुभायन |
देख्यो दुरयो वह कुञ्ज-कुटीर में, बैठो पलोटतु राधिका पाँयन||
बहुत उम्दा!
ReplyDeleteमैं ज्योतिर्लिन्गम हूँ .मेरा अप भ्रंश रूप शिवलिंग कहलाता है वही मेरा प्रतीक चिन्ह है .मैं परम ज्योति (प्रकाश )हूँ .ईसा ने भी यही कहा है -God is light .
ReplyDeleteब्रह्मा -विष्णु -महेश का भी रचता मैं ही हूँ मेरी ही रचना है यह त्रिमूर्ति .
गुरुनानक देव ने भी यही कहा -एक हू ओंकार निराकार .काबा में भी मैं ही हूँ मेरा ही वृहद् स्वरूप वह संग -ए -असवद (पवित्र पत्थर )है वृहद् आकार का वह शिव लिंग ही है .मुसलमान इस पवित्र पत्थर के बोसे लेते हैं .रामेश्वरम में राम चन्द्र (चन्द्र वंशी राजा राम )मुझे ही पूजते हैं .गोपेश्वर (मथुरा स्थित मंदिर )में कृष्ण मुझे ही पूजते हैं .सर्वत्र मेरा ही गायन है .
मैं आनंद का, प्रेम का, शान्ति का ,सागर हूँ .कर्तव्य बोध से मैं भी बंधा हूँ .अभी यह कायनात विकारों में आ चुकी है सर्वत्र विकारों का ही राज्य है .पांच विकार नर के पांच नारी के बना रहे हैं दशानन .सर्वत्र इसी माया रावण का राज्य है .मनमोहन तो निमित्त मात्र हैं .
मेरा साधारण मनुष्य तन मैं अवतरण हो चुका है जिन लोगों ने मुझे पहचान लिया है वह मेरे साथ इस मैली हो चुकी सृष्टि के सफाई अभियान में लग चुकें हैं .योग बल से पवित्रता के संकल्प से अपना स्वभाव संस्कार बदल रहें हैं .शुभ वाइब्रेशन प्रकृति के पांच तत्वों को भी दे रहें हैं .इधर विकार भी चरम पर हैं .मैं किसी को दुःख नहीं देता हूँ .सब अपना कर्मबंध भोग रहे हैं .हिसाब किताब तो चुक्तु होना ही है .या तो सज़ा खाके या फिर पवित्र होकर .चक्र फिर से शुरू होना है सम्पूर्ण पवित्रता का .अभी तो सब अपवित्र बन पड़े हैं इसीलिए यह विनाश के बादल मंडरा रहे हैं यहाँ वहां .उत्तराखंड तो रिहर्सल है .टेलर है फिल्म तो अभी आनी है .विनाश और नव -निर्माण की यही कहानी है .
एक बात और मनुष्य मात्र मेरा अंश नहीं है मेरा वंश है मेरी ही genealogy है मैं कण कण मैं नहीं हूँ .सूरज चाँद सितारों से परे, परे से भी परे ,ज्ञात सृष्टि की सीमा ,क्वासर्स से भी परे मैं ब्रह्म लोक ,परमधाम ,मुक्ति धाम ,का वासी हूँ वही सब आत्माओं का भी मूल वतन है .नेचुरल हेबिटाट है कुदरती आवास है .वहीँ से मैं आता हूँ -यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ......यहाँ भारत में ही मेरा अवतरण होता है यहीं सुखधाम स्वर्ग होता है यहीं फिर रौरव नरक होता है काल का पहिया ऐसे ही घूमता रहता है जिसका जैसा पुरुषार्थ उसका वैसा प्रारब्ध कर्म भोग कर्म फल .मैं तो अ-करता हूँ अभोक्ता ,अजन्मा हूँ .
तुम खुद को शिवोहम कहते हो फिर मुझे ढूंढते भी हो .आत्मा सो परमात्मा कहने वाले महात्मा को बतलाओ -भाई तू तो महान आत्मा है फिर एक साथ परमात्मा कैसे हो सकता है फिर काहे गाते हो -आत्मा और परमात्मा अलग रहे बहु काल ,सुन्दर मेला तब लगा ,जब सतगुरु मिला दलाल .तो भाई आत्मा अलग है परमात्मा अलग है .वह तो है ही सर्व आत्माओं का बाप .फिर आत्मा (पुत्र )अपना ही बाप (परमात्मा )कैसे हो सकता है . अलग है .आत्मा ब्रह्म तत्व में लीन नहीं हो सकती है .ब्रह्म तत्व तो छटा महत तत्व है रिहाइश की जगह है आवास है तुम सब आत्माओं का .
ॐ शान्ति .
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
http://kpk-vichar.blogspot.com/2013/06/blog-post_24.html?showComment=1372170092421#c6910857815792378883
जिज्ञासा! जिज्ञासा !जिज्ञासा !
@ शिवलिंग कहलाता है -
Deleteसाधारण व्यक्ति इसे शिवलिंग ही समझते है परन्तु वास्तव में यह शिव और पार्वती के लिंगो का संगम है .इसे लिंग संगम या शिव पार्वती लिंग या कोई उपयुक्त शब्द का प्रयोग होना चाहिए . जिसमे शिव और पार्वती दोनों का उल्लेख हो .यह है श्रृष्टि ,उत्पत्ति चिन्ह.
@मैं परमज्योति हूँ (प्रकाश हूँ )
Delete--हमारे जीवन में प्रकाश फ़ैलाने वाले दो ही तत्त्व नजर आते हैं वे हैं अग्नि और विद्युत् .क्या यही ईश्वरीय रूप है ? शास्त्रों में शब्द- ब्रह्म रूप का भी उल्लेख है ,क्या यह ईश्वरीय रूप नहीं है ?
$ शुभ वाइब्रेशन प्रकृति के पांच तत्त्व को भी दे रहे है
Deleteमेरी पोस्ट "जन्म,मृत्यु और मोक्ष "पर अपना अमूल्य प्रतिक्रिया देने की कष्ट करे
अनुभूति : जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
@मैं कण कण में नहीं हूँ .....
Deleteयह आस्था से विरोधाभाषी है
bhai sharma ji apne geeta ki vyakhya kar ke asmanjas ki sthiti ko spasht krane ka pryas kiy padh kr achchha laga........
DeleteMujhame tum ho magar main tumame adhura hun !
ReplyDeletetum apane apane swarth me adhure main pura hun ||
JAY JAY SHREE RADHE ! sundar prayas shreeman !
गहन प्रश्न उठाती बहुत प्रभावी रचना...
ReplyDeleteप्रभावी प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteप्रभावी अभिव्यक्ति .......
ReplyDeleteजिज्ञासा उठना जरूरी है ... और वो सहज भी है ... पर ये जरूरी नहीं की ईश्वर स्वयं आपकी जिज्ञासा पूरी करे ... ये तो पहचाने की बात है ... शायद वो कई रूपों में रहता हो ...
ReplyDeleteअच्छी भावपूर्ण प्रस्तुति !!
ReplyDeleteआदरणीय सर नमस्कार, यह एक ऐसा गंभीर विषय है जिसके प्रश्नों का उत्तर हमारी आस्था और मन सयुँक्त रूप से दे सकते हैं और जो सभी के लिए अलग अलग भी हो समता है
ReplyDeletechitranshsoul.blogspot.com
जिज्ञासा अंतिम सांस तक ..
ReplyDeleteगहन अभिवयक्ति......
ReplyDeleteआपकी यह रचना बहुत ही सुंदर है…
ReplyDeleteमैं स्वास्थ्य से संबंधित छेत्र में कार्य करता हूं यदि आप देखना चाहे तो कृपया यहां पर जायें
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