बहुत दिनों की अभिलाषा थी कि बनू केबीनेट मंत्री
न जाने क्या क्या जतन किया ,किसकी कितनी चापलूसी की।
नत मस्तक हो हाई कमान का पद धूल रखा जिव्हा,माथे पर
पी एम के पीछे अर्दली बनकर भागते रहे बाजार और दफ्तर।
सफल हुआ कठोर तपस्या ,पूरी हुई वर्षों की मनोकामना
हाई कमान का फरमान ज़ारी हुआ, पी एम भी नहीं किया मना।
केबिनेट मंत्री बना मैं , हुआ चारो ओर जय जयकार
पा लिया सोने की मुर्गी , ईमानदारी की झूठी कसम खाकर।
अंडा छिनकर भागा वंश के नालायक औलाद,छोड़ मुर्गी खुला
ख़बर पहुँची अखबार के दफ्तर , अखबार से सब भेद खुला।
दस करोड़ का अंडा था , मुर्गी को खुश रखना था ,
अंडा छिनकर उसको नाराज़ किया ,गुस्सा मुर्गी के सर पर था।
कोंक कौन , कोंक कौन चोर आया ,मुर्गी ने जोर से चिल्लाया,
पडोसी ने सुना ,अखबार ने सूना ,सुनकर चैनलों ने हर्षाया।
वेवकुफी औलाद की ,फंस गया मैं , हमको सब कहते हैं चोर
भागना पड़ा मुहँ छुपाकर , अब घर बैठे हैं ,कुर्सी छोड़।
कालीपद " प्रसाद "
©सर्वाधिकार सुरक्षित
न जाने क्या क्या जतन किया ,किसकी कितनी चापलूसी की।
नत मस्तक हो हाई कमान का पद धूल रखा जिव्हा,माथे पर
पी एम के पीछे अर्दली बनकर भागते रहे बाजार और दफ्तर।
सफल हुआ कठोर तपस्या ,पूरी हुई वर्षों की मनोकामना
हाई कमान का फरमान ज़ारी हुआ, पी एम भी नहीं किया मना।
केबिनेट मंत्री बना मैं , हुआ चारो ओर जय जयकार
पा लिया सोने की मुर्गी , ईमानदारी की झूठी कसम खाकर।
अंडा छिनकर भागा वंश के नालायक औलाद,छोड़ मुर्गी खुला
ख़बर पहुँची अखबार के दफ्तर , अखबार से सब भेद खुला।
दस करोड़ का अंडा था , मुर्गी को खुश रखना था ,
अंडा छिनकर उसको नाराज़ किया ,गुस्सा मुर्गी के सर पर था।
कोंक कौन , कोंक कौन चोर आया ,मुर्गी ने जोर से चिल्लाया,
पडोसी ने सुना ,अखबार ने सूना ,सुनकर चैनलों ने हर्षाया।
वेवकुफी औलाद की ,फंस गया मैं , हमको सब कहते हैं चोर
भागना पड़ा मुहँ छुपाकर , अब घर बैठे हैं ,कुर्सी छोड़।
कालीपद " प्रसाद "
©सर्वाधिकार सुरक्षित
सुन्दर रचना !!
ReplyDeleteआज ०४/०६/२०१३ को आपकी यह पोस्ट ब्लॉग बुलेटिन - काला दिवस पर लिंक की गयी हैं | आपके सुझावों का स्वागत है | धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार ! तुषार जी .
Deleteसपाट पर रोचक..
ReplyDeleteसही कहा
ReplyDeleteबहुत बढिया ! बिल्कुल तस्वीर खींच कर रख दी आज के नेताओं की ! बहुत खूब !
ReplyDeletesarthak nd satik bat ....
ReplyDeleteबढिया
ReplyDeleteबहुत बढिया
सही खाका खींचा आपने, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत खूब बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteनई पोस्ट
क्या आपको अपना मोबाइल नम्बर याद नहीं
आज के नेताओं का सही चित्रण ,,
ReplyDeleterecent post : ऐसी गजल गाता नही,
बहुत बढिया
ReplyDeleteक्या बात है भाई जी
ReplyDeleteवर्तमान के सच को क्या उकेरा है
बहुत खूब
उत्कृष्ट प्रस्तुति----
आग्रह है
गुलमोहर------
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (05-06-2013) के "योगदान" चर्चा मंचःअंक-1266 पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार !शास्त्री जी .
Deleteसराहनीय-.सुन्दर पोस्ट आभार . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
ReplyDeleteBHARTIY NARI .
मज़ेदार !
ReplyDeleteओ हो ..
ReplyDeleteमैं सोंचता रह गया कि मुझे भी कुछ फायदा होगा ..
फ़ायदा लेने वाले के ऊपर तिरछी नज़र है सतीश जी !
Deleteबहुत खूब .खूबसूरत
ReplyDeleteहकीकत जैसा सपना !
ReplyDeleteसुन्दर...
ReplyDeleteEkdam Satik,Bahut Khub....
ReplyDeleteये तो आडवानी जी जैसी हालत हो गयी ...इतना संघर्ष किया हाथ कुछ नहीं आया...:))
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