Tuesday, 4 June 2013

मंत्री बनू मैं

बहुत दिनों की अभिलाषा थी कि बनू केबीनेट मंत्री
न जाने क्या क्या जतन किया ,किसकी कितनी चापलूसी की।
नत मस्तक हो हाई कमान का पद धूल रखा जिव्हा,माथे पर
पी एम के पीछे अर्दली बनकर भागते रहे बाजार और दफ्तर।
सफल हुआ कठोर तपस्या ,पूरी हुई वर्षों की मनोकामना
हाई  कमान का फरमान ज़ारी हुआ, पी एम भी नहीं किया मना।
केबिनेट  मंत्री  बना  मैं , हुआ  चारो  ओर  जय जयकार
पा लिया सोने की मुर्गी , ईमानदारी की झूठी कसम खाकर।
अंडा छिनकर भागा वंश के  नालायक औलाद,छोड़ मुर्गी खुला 
ख़बर पहुँची अखबार के दफ्तर , अखबार से सब भेद खुला।
दस  करोड़  का  अंडा  था , मुर्गी  को  खुश  रखना  था ,
अंडा छिनकर उसको नाराज़ किया ,गुस्सा मुर्गी के सर पर था।
कोंक कौन , कोंक कौन चोर आया ,मुर्गी ने जोर  से चिल्लाया,
पडोसी ने सुना ,अखबार ने सूना ,सुनकर चैनलों ने हर्षाया।
वेवकुफी औलाद की ,फंस गया मैं , हमको सब कहते हैं चोर
भागना  पड़ा  मुहँ   छुपाकर , अब  घर  बैठे  हैं ,कुर्सी छोड़।


कालीपद " प्रसाद "


©सर्वाधिकार सुरक्षित


24 comments:

  1. आज ०४/०६/२०१३ को आपकी यह पोस्ट ब्लॉग बुलेटिन - काला दिवस पर लिंक की गयी हैं | आपके सुझावों का स्वागत है | धन्यवाद!

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  2. बहुत बढिया ! बिल्कुल तस्वीर खींच कर रख दी आज के नेताओं की ! बहुत खूब !

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  3. सही खाका खींचा आपने, बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. क्या बात है भाई जी
    वर्तमान के सच को क्या उकेरा है
    बहुत खूब
    उत्कृष्ट प्रस्तुति----

    आग्रह है
    गुलमोहर------

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (05-06-2013) के "योगदान" चर्चा मंचःअंक-1266 पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. ओ हो ..
    मैं सोंचता रह गया कि मुझे भी कुछ फायदा होगा ..

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    1. फ़ायदा लेने वाले के ऊपर तिरछी नज़र है सतीश जी !

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  7. बहुत खूब .खूबसूरत

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  8. हकीकत जैसा सपना !

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  9. ये तो आडवानी जी जैसी हालत हो गयी ...इतना संघर्ष किया हाथ कुछ नहीं आया...:))

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