आज प्रेमी, प्रेमिका एस .एम .एस या ईमेल से प्रेम का इज़हार करते है। परतु पुराने ज़माने में ऐसा साधन नहीं था। एकमात्र साधन था पत्र। प्रेमिकाएं पत्र लिखकर प्रेमी को भेजा करती थीं परन्तु पत्र में कभी कभी अपना परिचय छुपाकर रखती थी और अनबुझ पहेली से अपना प्रेम प्रदर्शित करती थी। प्रेमी को उसे समझकर प्रेमिका के पत्र का उत्तर देना पड़ता था। ऐसे ही एक अनबुझ पहेली के उत्तर में प्रेमी क्या उत्तर देता है ,यही इस रचना का विषयवस्तु है।
प्रेमिका की पहेली :-
भेजती हूँ पहेली प्राणप्रिये , जल्दी देना उत्तर।
भूल ना जाना प्राणप्रिया को, करुँगी मैं इंतज़ार।।
पहेली
" फूलों में फुल गुलाब का फुल
जल में जल काशी का जल
भाई में भाई पराया भाई
रानी में रानी दिल्ली की रानी।"
प्रेमी का जवाब :-
फूलों में तुम गुलाब हो ,नदियों में पावन गंगा .
मैं पराया भाई में श्रेष्ट हूँ ,मुझको बना लो तुम सैयाँ।
प्रियतमा ! हो कौन तुम ?नाम क्या है ? कहाँ है तुम्हारा बास ?
दर्द- ए -दिल से पीड़ित हो , आ जाओ , दवा है मेरे पास।
तुम दिल की रानी चतुर ,हो बड़ी अभिज्ञा सायानी ,
दिल की बातें करती हो ,पर छोडती नहीं कोई निशानी।
पत्र तुम्हारा इत्र में डूबा ,देता है मीठी मधुर तासीर ,
तुम आओगी, जन्नत मिलेगा ,वर्ना भेजदो एक तस्वीर।
कब तक यूँ परदे में रहोगी ? करोगी मुझे बेकरार ,
कैसा है रंग रूप तुम्हारा ,कैसा है आचार विचार ?
फूलों सा होगा कोमल बदन ,रंग गुलाब की पंखुडियां
कान में होगा झुमका और ,हाथों में रंगीन चुदियाँ।
बालों में गजरा होगा , पावों में आलता की लालिमा
मेहंदी से महकती बदन ,संकेत होगा तुम्हारे आने का।
आँखों में काजल होगा ,माथे पर प्रभात का रक्तिम सूरज ,
सुन्दर होगी तुम उर्वशी जैसी , तिलोत्तमा सम उत्तुंग उरज।
पायल की झंकार होगी , जब चलोगी धरती पर
रिमझिम बरसते पानी जैसे संगीत छाएगा मेरे मन पर।
अप्सराएं भी शर्माती होगी देख तुम्हारी रूप माधुरी ,
छुपी हो क्यों ? सामने आजाओ , मिटा दो बीच की दुरी।
मैं पियूँगा रूप -रस -मधुर ,पिलाना तुम आँखों आँखों में,
तुम दुबोगी, मैं दुबूंगा, हम डूबेंगे अथाह प्रेम सागर में।
लिखो , कब आओगी ? कब होगा तुम्हारा मेरा मिलन ,
कमल मुख का दर्शन हेतु ,अधीर हैं ,हमसे नहीं होता सहन।
बेकरार दिल , फिर भी इंतज़ार रहेगा क़यामत तक ,
किन्तु इंतज़ार करता हूँ किसका ? नहीं जाना अब तक।
कैसे भेजूं पत्र तुम्हे ? कहाँ भेजूं ? कोई नहीं है अता पता ,
इतनी मेहरबानी करो मुझ पर ,भेज दो अपना घर का पता।
कालीपद "प्रसाद"
©सर्वाधिकार सुरक्षित
वाह, बहुत ही सुन्दर उत्तर।
ReplyDeleteवाह बहुत ही सुन्दर..
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन और सार्थक प्रस्तुति,आभार।
ReplyDeleteघर का पता नहीं होता था तो पत्रोत्तर कैसे जाता था
ReplyDeleteमनोरंजक रचना
rochak prastuti .
ReplyDeleteबेहतरीन उत्तर और सुन्दर रचना
ReplyDeleteआह्लादित करती पंक्तियाँ। प्रेम हर रंग में, हर रूप में लुभाता है।
ReplyDeleteWOW
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति ,बेहतरीन उत्तर ,,,
ReplyDeleteRECENT POST: हमने गजल पढी, (150 वीं पोस्ट )
किस युग में ले गए :-)
ReplyDeleteसुन्दर....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना... आभार
ReplyDeleteबेहतरीन जवाब ,लाजवाब रचना
ReplyDeleteवह ! क्या कहने !
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत ......
ReplyDeleteकबूतर ने लाया होगा संदेश,
ReplyDeleteजब प्रीतम बसे विदेश.
क्या बात है, बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ये तो कर्ण पिशाचिनी यंत्र (मोबाईल) के जमाने से निकाल कर आप पौराणिक काल में ले गये? बहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
:)
ReplyDeletesunder abhivyakti.. :)
बहुत सुन्दर
ReplyDeletebada acchha samvad pyaar bhara ...
ReplyDeleteलाजवाब.....गजब,,आनंद आया !
ReplyDeleteबहुत सुंदर सवांद ......
ReplyDeleteबहुत खूब!
ReplyDeleteक्या बात है | परिपाटी से हट कर रचना |अनन्य | भावानुभूति अपने एक शेर से -
ReplyDeleteनहीं है उम्र कम लेकिन,बहुत भोले हैं दिल के वो |
किये ज़िद कल से बैठे हैं,दिखाओ दर्दे दिल हमको |
-राज
बढ़िया लिखा है |
ReplyDeleteआशा
भई वाह ..
ReplyDeleteअनूठी रचना ! बधाई !!
बहुत अच्छा
ReplyDeleteसुन्दर लिखा प्रेमी का उत्तर...
बहुत सुन्दर संवाद ..मनभावन
ReplyDeleteभ्रमर ५
वाह! क्या कहने लाजवाब रचना |
ReplyDeleteNice information
ReplyDeletehtts://www.khabrinews86.com