गणतंत्र की महिमा
है, कोई भी लड़े चुनाव
फ़क़ीर बन गए राजा, जीतकर आम चुनाव|
आनंद विभोर भये
राजा, ख़ुशी न समाया दिल में
चमचे डूबे मदिरा
में, डूबे राजा जीत के नशे में|
चमचों ने की जय
जयकार, गद-गद हुए राजा जी
लुटाकर धन साहूकारों
का, चुनाव जीते राजा जी|
हीरे-मोती, सोना-चाँदी, थे सब रत्नों का अम्बार
जवाहरातों से भरा पड़ा
था, सरकारी सब भंडार|
रत्नों का चमक देख, राजा जी खूब बौरा गए
एक चोर चुपके से, राजा के मन में बस गए|
सोचने लगे जनता के
राजा, कैसे मारे सेंध
राज खजाने में
प्रवेश, राजा को भी था निषेध|
मंत्री, संत्री,
खजांची का, लगाया राज दरबार
पूछा सबसे, “बेकार
रत्न-भण्डार का क्या दरकार?”
“रत्न, जवाहरात,
सोना, चाँदी बेचकर धन जुटाओ
जन कल्याण के काम
में, वो सब धन लगाओ|
वादा जो किया है
जनता से, उसे पूरा करना है
अगला चुनाव जब भी
हो, उसे हमें जितना है|
खाद्य द्रव्य की
कीमत पर, मजबूत अंकुश लगाओ
पेट्रोल, डीज़ल, गैस
की कीमत, घटाते बढ़ाते जाओ|
देश अपना, पार्टी
अपनी, अपनी नीति लगाओ
हमारे हितैषी के हित
में, सभी कानून बनाओ|
अपना देश बहुत बड़ा, जनता
का दिल भी बड़ा है
छोटे-मोटे घपले तो
होते है, उससे क्या घबराना है|
जनता की चिंता मत
करो, उनकी स्मृति कमज़ोर है
थोड़ी देर करती
उठा-पटक, पर जल्दी शांत हो जाती है|
मीडिया पर ध्यान
रखो, राई का पहाड़ बनाती है|
रातो रात रंक को
राजा, राजा को रंक बनाती है|”
पाकर राज आज्ञा सब,
मंत्री, संत्री, बहुत खुश हुए
औने-पौने दामों में,
सोने-चाँदी के भण्डार बेच दिए|
बिक गए मोती माणिक्य
सब, खाली सरकारी भंडार
खरीदने वाले और कोई
नहीं, थे सब राजाजी के नौकर|
सार्थक लेखन
ReplyDeleteकरारा थप्पड़
देश के हालात बिगड़ते ही जाना है
सुंदर !
ReplyDeleteसुंदर व्यंग. आम भी खास हो गए इस राजनीति में.
ReplyDeleteतू राजा मैं मंत्री
ReplyDeleteसब एक है कोई नहीं यहाँ संत्री
...व्यवस्था पर अच्छा व्यंग ...
बहुत खूब। अच्छी रचना।
ReplyDeleteबहुत खूब ।
ReplyDeleteबहुत खूब जी |
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