Monday, 26 October 2015

सुनो एक राजा की कहानी ! (काल्पनिक )



गणतंत्र की महिमा है, कोई भी लड़े चुनाव
फ़क़ीर बन गए राजा, जीतकर आम चुनाव|
आनंद विभोर भये राजा, ख़ुशी न समाया दिल में
चमचे डूबे मदिरा में, डूबे राजा जीत के नशे में|
चमचों ने की जय जयकार, गद-गद हुए राजा जी
लुटाकर धन साहूकारों का, चुनाव जीते राजा जी|
हीरे-मोती, सोना-चाँदी, थे सब रत्नों का अम्बार
जवाहरातों से भरा पड़ा था, सरकारी सब भंडार|
रत्नों का चमक देख, राजा जी खूब बौरा गए
एक चोर चुपके से, राजा के मन में बस गए|
सोचने लगे जनता के राजा, कैसे मारे सेंध
राज खजाने में प्रवेश, राजा को भी था निषेध|
मंत्री, संत्री, खजांची का, लगाया राज दरबार
पूछा सबसे, “बेकार रत्न-भण्डार का क्या दरकार?”
“रत्न, जवाहरात, सोना, चाँदी बेचकर धन जुटाओ
जन कल्याण के काम में, वो सब धन लगाओ|
वादा जो किया है जनता से, उसे पूरा करना है
अगला चुनाव जब भी हो, उसे हमें जितना है|
खाद्य द्रव्य की कीमत पर, मजबूत अंकुश लगाओ
पेट्रोल, डीज़ल, गैस की कीमत, घटाते बढ़ाते जाओ|
देश अपना, पार्टी अपनी, अपनी नीति लगाओ
हमारे हितैषी के हित में, सभी  कानून बनाओ|
अपना देश बहुत बड़ा, जनता का दिल भी बड़ा है
छोटे-मोटे घपले तो होते है, उससे क्या घबराना है|
जनता की चिंता मत करो, उनकी स्मृति कमज़ोर है
थोड़ी देर करती उठा-पटक, पर जल्दी शांत हो जाती है|
मीडिया पर ध्यान रखो, राई का पहाड़ बनाती है|
रातो रात रंक को राजा, राजा को रंक बनाती है|”
पाकर राज आज्ञा सब, मंत्री, संत्री, बहुत खुश हुए
औने-पौने दामों में, सोने-चाँदी के भण्डार बेच दिए|
बिक गए मोती माणिक्य सब, खाली सरकारी भंडार
खरीदने वाले और कोई नहीं, थे सब राजाजी के नौकर|


© कालीपद ‘प्रसाद’

7 comments:

  1. सार्थक लेखन
    करारा थप्पड़

    देश के हालात बिगड़ते ही जाना है

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  2. सुंदर व्यंग. आम भी खास हो गए इस राजनीति में.

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  3. तू राजा मैं मंत्री
    सब एक है कोई नहीं यहाँ संत्री
    ...व्यवस्था पर अच्छा व्यंग ...

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  4. बहुत खूब। अच्‍छी रचना।

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  5. बहुत खूब जी |

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