यादें !
देख पीड़ा तेरी अरसों से
दिल रोता रहा अन्दर से |
आँसू बहकर सुख गए नयन में
खून रिस रहा है दिल में |
नहीं हूँ, जैसा राम भक्त हनुमान
कैसे दिखाऊँ तुझे, दिल है लहुलुहान |
सी लिया होंठ मैंने अपना
केवल एहसास करता हूँ तेरी वेदना |
और न यादों का नस्तर चला मुझ पर
परेशां हूँ मैं, तेरे गैरहाजिर पर |
कालीपद 'प्रसाद'
गहरे भाव..
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