फागुन में होली का त्यौहार
लेकर आया रंगों का बहार
लड्डू ,बर्फी,हलुआ-पुड़ी का भरमार
तैयार भंग की ठंडाई घर घर।
पीकर भंग की ठंडाई
रंग खेलने चले दो भाई
साथ में है भाभी और घरवाली
और है साली ,आधी घरवाली।
भैया भाभी को प्रणाम कर
पहले भैया को रंगा फिर भाभी संग
पिचकारी मारना , गुलाल मलना
शुरू हुआ खूब हुडदंग।
घरवाली तो पीछे रही
पर आधी घरवाली बोली
"जीजा प्यारे ",साली मैं दूर से आई
छोडो आज घरवाली और भौजाई।
इस साल की रंगीन होली तो
केवल हम दोनों के लिए आई।
आज तुमपर मै रंग लगाउंगी
मौका है आज ,दो दो हाथ करुँगी
न रोकना ,न टोकना, मैं नहीं मानूँगी
आज तो केवल मैं अपना दिल की सुनूँगी।
तुम तो मेरा साथ देते रहना
कदम से कदम मिलाते रहना ,
मैं नाचूँगी , तुम नाचना .
हम नाचेंगे देखेगा ज़माना।"
रंग की बाल्टी साली पर कर खाली
जीजा बोले "सब करूँगा जो तूम कहोगी
पर तुम तो अभी कच्ची कली हो
शबाबे हुश्न को जरा खिलने दो
खिलकर फुल पहले महकने दो
महक तुम्हारे नव यौवन का
मेरे तन मन में समा जाने दो
तब तक तुम थोडा इन्तेजार करो।
वादा है ,अगली होली जमकर
केवल तुम से ही खेलूँगा।
यौवन का मय जितना पिलाओगी
जी भरकर सब पी जाऊँगा .
नाबालिग़, अधखिली कली हो
धैर्य धरो ,जिद छोड़ दो
खिले फूलों पर आज
मुझको जी भर के मंडराने दो।"
साली बोली "तुम बड़े कूप मंडुप हो
भारत सरकार के नियम कानून से अनभिज्ञ हो
दो साल का छुट मिला है सहमति रसपान का
हिम्मत करो आगे बढ़ो , अब डर किस बात का ?
भौंरें तो कलियों पर मंडराते हैं ,मुरझाये फूलों पर नहीं
मधुरस तो कलियों में है ,मुरझाये फुलों में नहीं। "
कालीपद "प्रसाद "
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ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "एक मिनट की लम्बाई - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत
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