सागर पर्वत दरिया
पादप, सुंदर हर झरना नाला
थे सुन्दर वन जंगल
जैसे, हरा पीला फूल माला |
शुद्ध हवा निर्मल जल
धरती, सब प्रसाद हमने पाया
काला धुआँ दूषित
वायु सब, हैं स्वार्थी मनुष्य जाया ||
पागलों ने काट पौधे
सब, वातावरण को उजाड़ा
बे मौसम अब वर्षा
होती, बे मौसम गर्मी जाडा |
ववंडर कहीं तूफ़ान
कहीं, है प्रदुषण का नतीजा
कहीं सुखा तो कही जल
प्रलय, होगी विध्वंस उर्वीजा* ||
समझे नहीं इंसान अब
तक, अब तो समझना पडेगा
वरना बहुत देर न हो
जाय, तब जीवन खोना पडेगा |
हवा पानी सब
प्रदूषित है, सुरक्षित नहीं है दिल्ली
इन्द्रप्रस्थ बन गया
अब तो, सब मूढ़ का शेखचिल्ली ||
*उर्वीजा –जो पृथ्वी से उपजा हो
कालीपद ‘प्रसाद’
aabhaar aapkaa Harshvardhan ji
ReplyDelete