Tuesday, 10 December 2013

भाव -मछलियाँ



                                               


छोटी बड़ी मछलियों के  झुण्ड 
साथ साथ विचरण करती 
सरोवर में |
थोडा सा ही खतरे की आहट पाते ही 
तड़ितवेग से मुड जाती है,
छुप जाती है 
गहरे पानी के तल में |

कविता के भाव -भावना -विचार  भी 
आते हैं मीन की भांति झुण्ड में|
क्षुद्र कंकड़ की आहट से
तितर वितर हो जाते हैं राह से|
कपूर ज्यों उड़ जाते हैं सब भाव-विचार 
मानो मीन हीन हो गया है सरोवर
वैसे ही भाव -विचार शुन्य होते मन-सरोवर |
मीन की भांति मन मौजीहैं ये  भाव
खुद तैरकर आती सतह पर ,एकपल 
फैलाती है खुशबु फिर गायब अगली पल ||


कालीपद " प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित


20 comments:

  1. बहुत सही कहा आप ने भावनाए भी आती और छूप जाती है मछलियो के झुंड़ की तरह .... बहुत सुन्दर.. मेरी नई पोस्ट 'आमा' पर आप का स्वागत..

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  2. सच कहा है ... भाव भी ऐसे ही तितर बितर हो जाते हैं अनेकों बार ...

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  3. मानव मन मीन जैसी
    वाह
    बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  4. सही कहा आपने भावनाएं भी आती है और चली जाती है मछली की झुण्ड की तरफ .........बहुत सुंदर रचना..... मेरे पोस्ट... माफ़ नहीं कर पाऊँगी... पर आपका स्वागत .

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  5. मछलियों से भावों की सुन्दर तुलना की है |

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  6. सुन्दर अतुलनीय तुलना

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  7. मानव मन पर मछली का बिम्ब बहुत ही बेहतरीन रचना...
    http://mauryareena.blogspot.in/
    :-)

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  8. बेहद सुन्दर रचना ...

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  9. behad lajbab prastuti .....aabhr sir ji

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  10. बहहुत खूबसूरत , कविता होती हैं मछलियों की तरह ..

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  11. भाव अनुभाव का मनो -विज्ञान सुन्दर तरीके से परोसा है इस प्रस्तुति में। आभार आपकी टिप्पणियों का प्रिंसिपल साहब।

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  12. बेहतरीन रचना

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  13. bilkul sahi udharan diya hai apne...hamara man aisa hi hota hai

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