छोटी बड़ी मछलियों के झुण्ड
साथ साथ विचरण करती
सरोवर में |
थोडा सा ही खतरे की आहट पाते ही
तड़ितवेग से मुड जाती है,
छुप जाती है
गहरे पानी के तल में |
कविता के भाव -भावना -विचार भी
आते हैं मीन की भांति झुण्ड में|
क्षुद्र कंकड़ की आहट से
तितर वितर हो जाते हैं राह से|
कपूर ज्यों उड़ जाते हैं सब भाव-विचार
मानो मीन हीन हो गया है सरोवर
वैसे ही भाव -विचार शुन्य होते मन-सरोवर |
मीन की भांति मन मौजीहैं ये भाव
खुद तैरकर आती सतह पर ,एकपल
फैलाती है खुशबु फिर गायब अगली पल ||
कालीपद " प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
बहुत सही कहा आप ने भावनाए भी आती और छूप जाती है मछलियो के झुंड़ की तरह .... बहुत सुन्दर.. मेरी नई पोस्ट 'आमा' पर आप का स्वागत..
ReplyDeleteसुंदर रचना.
ReplyDeleteरामराम.
सच कहा है ... भाव भी ऐसे ही तितर बितर हो जाते हैं अनेकों बार ...
ReplyDeleteक्या बात वाह!
ReplyDeletebahut sundar ..
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeletewaah behatarin ji
ReplyDeleteमानव मन मीन जैसी
ReplyDeleteवाह
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति
सही कहा आपने भावनाएं भी आती है और चली जाती है मछली की झुण्ड की तरफ .........बहुत सुंदर रचना..... मेरे पोस्ट... माफ़ नहीं कर पाऊँगी... पर आपका स्वागत .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर , धन्यवाद
ReplyDeleteनया प्रकाशन -: जानिये कैसे करें फेसबुक व जीमेल रिमोट लॉग आउट
मछलियों से भावों की सुन्दर तुलना की है |
ReplyDeleteसुन्दर अतुलनीय तुलना
ReplyDeleteमानव मन पर मछली का बिम्ब बहुत ही बेहतरीन रचना...
ReplyDeletehttp://mauryareena.blogspot.in/
:-)
बेहद सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteअच्छी उपमा
ReplyDeletebehad lajbab prastuti .....aabhr sir ji
ReplyDeleteबहहुत खूबसूरत , कविता होती हैं मछलियों की तरह ..
ReplyDeleteभाव अनुभाव का मनो -विज्ञान सुन्दर तरीके से परोसा है इस प्रस्तुति में। आभार आपकी टिप्पणियों का प्रिंसिपल साहब।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeletebilkul sahi udharan diya hai apne...hamara man aisa hi hota hai
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