जनतन्त्र
१.
जनतंत्र का अर्थ था -जनता द्वारा चुनी हुई सरकार
जनता का ,जनता के हित के लिए बनी सरकार
हो जनता ही नियंता ,किन्तु चुनाव के बाद नेता
कहा जन को बाई,तंत्र रह गए ,जन से दूर सरकार !
२
बिक गई जनतंत्र उद्योग-पतियों के हाथों में
जनता बन गई कठपुतली नेताओं के हाथों में
उद्योगपति नचाता है नेता को, नेता जनता को
जनतन्त्र बन गई बाँदी,बड़े घरानों की हरम में |
चित्र गूगल से साभार |
लोकतंत्र में चौथा स्तंभ का दम्भ भरने वाले
सच्चाई का साथ देने की भीष्म प्रतिज्ञा करने वाले
सात पर्दों के पीछे छुपे राज को ढूंढ़ निकालनेवाली मीडिया
बेच दिया अपनी ईमान ,खरीदा नेता ओ उद्योग घरानेवाले|
राजनैतिक दल
भ्रष्टाचार कालाधन गुंडगर्दी का विरोध करने वाले
दागी हैं चाल चलन चरित्र का दुहाई देनेवाले
चुनाव में टिकिट दिया कालाधनी भ्रष्टाचारी को
गुंडे,कैदी खड़े हैं चुनाव में, है कोई चुनौती देनेवाले ?
दलों का सोच
जनता तो कैटल है.जिधर हांको उधर जायेगी
हर दशा ,हर हाल में वह चुनाव बूथ पर आएगी
व्होट हमें दे या विरोधी को ,क्या फरक पड़ता है
सरकार तभी चलेगी जब आधी मलाई हमें मिलेगी |
चुनाव आयोग
१
भैंसों को चरागाह में रखने की जिम्मा हमारे हाथ में है
हम मारते नहीं डंडा कभी भी ,पर डंडा हमारे हाथ में है
भैंसों के आगे चुनाव आयोग यही बीन बजाता रहता है
भैस मस्ती में झूमकर चरागाह का निषिद्ध घास चर जाती है |
२
शस्त्रहीन चुनाव आयोग हवा में डंडा घुमाता है
डंडे की आवाज भैसों को बीन की आवाज़ लगती है
कभी ताल में कभी बेताल में नाच भी लेती है भैंस
मस्ती में आँख कान बंद कर आयोग को सिंग मार देती है |
कालीपद 'प्रसाद '
सर्वाधिकार सुरक्षित
.
सब पर सन्नाट कटाक्ष, सशक्त पंक्तियाँ।
ReplyDeleteदेश का करने वाले घाटा
ReplyDeleteदेखें बखिया उधेड़ एक चांटा
होते मोटी खाल वाले
फैला रहेगा सन्नाटा
सादर
सुँदर !
ReplyDeleteसभी मुक्तक अच्छे लगे
ReplyDeleteउत्तम मुक्तक
ReplyDeleteसटीक,सार्थक और सामयिक मुक्तक....
ReplyDeleteसादर
अनु
सभी मुक्तक, सटीक, सार्थक और सामयिक भी ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा ...
बहुत बढ़िया व बेहतरीन मुक्तक , आदरणीय सर धन्यवाद
ReplyDeleteनया प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ प्राणायाम ही कल्पवृक्ष ~ ) - { Inspiring stories part -3 }
बेहतरीन तीखे व्यंग्य , आभार आपका !
ReplyDeleteसामयिक, सटीक व सार्थक मुक्तक ! बड़ी बेबाकी से यथार्थ को उधेडा है ! बधाई !
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं समसामयिक.
ReplyDeleteनई पोस्ट : कुछ कहते हैं दरवाजे
बहुत सार्थक और सुन्दर मुक्तक...
ReplyDeleteprasangik rachna ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (25-03-2014) को "स्वप्न का संसार बन कर क्या करूँ" (चर्चा मंच-1562) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
कामना करता हूँ कि हमेशा हमारे देश में
परस्पर प्रेम और सौहार्द्र बना रहे।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी
Deleteबहुत सुन्दर लाज़वाब मुक्तक
ReplyDeleteवाह-वाह...क्या बात है...
ReplyDeleteवाह...उम्दा और सामयिक पोस्ट...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@चुनाव का मौसम
सटीक,सार्थक और बहुत ही बढियां मुक्तक...
ReplyDeletebilkul sahi baat ....janta to jaanwaron ki tarah hi haanki jati hai ...!
ReplyDeleteसामयिक विषय पर बेहतरीन अभिव्यक्ति ....... बहुत सही .......
ReplyDeleteबिलकुल सही मन की बात कही है !
ReplyDeletebahut khoob likha hai har vishay par
ReplyDeleteshubhkamnayen
बहुत सही कहा.. सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteअच्छा है.........................
ReplyDeleteसुन्दर मुक्तक के द्वारा सामयिक अभिव्यक्ति का प्रस्तुति ,बहुत बढियाँ
ReplyDeleteबेहद उम्दा
ReplyDeleteसुंदर मुक्तक...
ReplyDeleteवाह !!
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