स्वर्णिम किरणों को समेटकर सूरज
छिप गए जब पश्चिम के अस्ताचल
काली चादर ओढ़ लिया धरती ने
अँधेरा छाया सारे जहाँ ,आसमां, उदयाचल |
संध्या ने घरों में चिराग जलाया
जंगल में लगा जुगनुओं का पहरा
अनन्त आसमान का अँधेरा गहरा
चाँद ने चाँदनी से उसका श्याह हरा |
शब्- ए- तारिक में चाँद ने
आसमान को तारों के हवाले कर दी
धरती पर जुगनू आसमान में तारे
दोनों में जमी खूब जुगलबंदी |
ताब सुबह महफ़िलें सजती रही
अंजुम जुगनुओं के द्वन्द चलती रही
कौन जीता कौन हारा तय नहीं हुआ
पूर्वांचल में प्रभात किरण का आगौन हुआ |
उदयगिरी पर जब सहस्रभानु का उदय हुआ
काली चादर रजनी का धुलकर सफ़ेद हुआ
रात्रि विराम से रवि –किरण प्रखर हुआ
फैलकर चहुँ ओर रविराज्य कायम किया |
निशाचरी प्रवृत्ति पर लगा विराम
जुगनू और तारों को मिला विश्राम
चिराग की अंतिम लौ ने मुंदलिया आँख
उगते सूरज के सामने हुए नत मस्तक |
कालीपद 'प्रसाद '
सर्वाधिकार सुरक्षित
सुंदर लेखन व बेहतरीन रचना , सर धन्यवाद !
ReplyDeleteनवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ सच्चा साथी ~ ) - { Inspiring stories -part - 6 }
~ ज़िन्दगी मेरे साथ -बोलो बिंदास ! ~( एक ऐसा ब्लॉग जो जिंदगी से जुड़ी हर समस्या का समाधान बताता हैं )
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteसादर
अनु
बहुत खूब!
ReplyDeleteनिशाचरी प्रवृत्ति पर लगा विराम
ReplyDeleteजुगनू और तारों को मिला विश्राम
चिराग की अंतिम लौ ने मुंडलिया आँख
उगते सूरज के सामने नत हुए मस्तक |
bahut sundar abhivyakti .badhai
अति सुन्दर...बहुत खूब...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (28-04-2014) को "मुस्कुराती मदिर मन में मेंहदी" (चर्चा मंच-1596) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी !
Deleteस्वर्ण हो गया
ReplyDeleteरवि की आँख खुली
निशा चादर |
बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..
ReplyDeleteबहुत बढिया प्रस्तुति..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रभावपूर्ण रचना
ReplyDeleteमन को छूती हुई
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर
आग्रह है----
और एक दिन
बेहतरीन रचना !
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