Tuesday, 27 May 2014

ग्रीष्म ऋतू !***



चित्र गूगल से साभार
                                                   
                                                                                         


अग्निवाण बरस रहा है ,रूद्र कुपित सूरज
धरती का ढाल-बादल को छेद डाला है सूरज
धू धू जल रही है धरती ,सुख रहे हैं नदी नाले
स्वार्थी मानव के दुष्कर्म से मानो क्रोधित है सूरज |

जलहीन सरोवर है ,पशु पक्षी तृषित हैं
जल के खोज में सब इधर उधर भाग रहे हैं
काटकर जंगल मानव ,छाँव को छीन लिया है
मुमूर्ष पशु ,पक्षी,वृक्ष को पावस का इन्तजार है |

कोमल टहनियाँ वृक्ष लता के मुरझा रहे हैं
मुरझे चेहरों के बीच में एक हँसता चेहरा है
सुख, दुःख, हँसना, रोना जीवन का अंग है
गुलमोहर का खिला चेहरा यही हमें सिखाता है |

धरती ने भी इस मौसम में दिया कुछ अनुपम उपहार
रसीला आम ,काली जामुन,लीची ,आडू और अनार
गर्मी भगाने खीरा,ककड़ी,तरबूज,करौंदा और अंजीर 
खट्टा मीठा अंगूर और अनारस, रस का सागर |

कालीपद 'प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित

16 comments:

  1. koi bhi mousam ho sabka apna alag hi lutf hai ...

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  2. ...बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !!

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  3. शानदार रचना |

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  4. आखिरी छंद में तो मुंह में पानी आ गया...बेहतरीन अभिव्यक्ति...

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  5. हर मौसम की अपनी सकारात्मकऔर नकारात्मक वृत्तियां होती हैं । बहुत सुदर गर्मी का वर्णन।

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  6. आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (01-06-2014) को ''प्रखर और मुखर अभिव्यक्ति'' (चर्चा मंच 1630) पर भी होगी
    --
    आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
    सादर

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    1. अभिषेक जी आपका आभार !

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  7. इस मौसम का भी अपना अलग ही मजा है
    गरीबों के लिए तो यही मौसम आनंददायी है
    सादर !

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  8. वाह मौसम का मज़ा आ गया ...

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  9. बहुत सुन्दर अर्थगर्भित रचना है परिवेश प्रधान।

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  10. ऋतु के अनुकूल कविता. बहुत सुन्दर, बधाई.

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