जिंदगी भर का अनुभव
कहूँ
या कहूँ निष्फल आचार
विचार
जिसका है यह
परिणाम....
टूट गया विश्वास
सब कर्म काण्ड में ,
स्थिर हुई आस्था
उस निर्गुण निराकार
परम ब्रह्म में l
नहीं बंधे है वह
कर्मकांड के बंधन
में ,
नहीं सीमित है
मंदिर-मस्जिद के
सीमाओं में,
कमलासन में स्थित
सदा
भक्त के हृद-कमल में
l
करो ध्यान ,ऐ मेरे
मन !
शांत चित्त होकर मौन
,
करो गुणगान
झंकृत हो सब
तन मन प्राण ,
परम शक्ति
बाल रवि सम
ज्योतिर्मय रूप
प्रकाशित होगा ह्रदय
पटल
तमस होगा दूर
प्रकाशित राह,नभ
निर्मल l
खोज पाओगे तुम
अस्तित्व अपनी,
हो तुम्हे ज्ञान....
भक्ति है अँधी
ज्ञान-चक्षु हीन
आधार है आस्था
किन्तु नहीं है दीन
,
आस्था का साथ
ज्ञान-चक्षु को मिले
अंतर्ध्यान में ...
रब के अनुसन्धान में
हमें परमानंद मिले l कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव.
नई पोस्ट : ओऽम नमः सिद्धम
satya kee anubhuti karati abhivyakti .very nice sir.
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया.... ..
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.
बहुत अच्छा !
ReplyDeleteगोस्वामी तुलसीदास
बहुत खूब
ReplyDeleteइश्वर प्राप्ति की खोज तो परम आनद है ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना ...
बहुत सुन्दर और सटीक
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteआध्यात्मिकता के रंग में रंगी बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना..
ReplyDeleteAti sundar srijan
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति…
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