Friday, 6 February 2015

आस्था और ज्ञान !







जिंदगी भर का अनुभव कहूँ
या कहूँ निष्फल आचार विचार
जिसका है यह परिणाम....
टूट गया विश्वास
सब कर्म काण्ड में ,
स्थिर हुई आस्था
उस निर्गुण निराकार
परम ब्रह्म में l
नहीं बंधे है वह
कर्मकांड के बंधन में ,
नहीं सीमित है
मंदिर-मस्जिद के सीमाओं में,
कमलासन में स्थित सदा
भक्त के हृद-कमल में l
करो ध्यान ,ऐ मेरे मन !
शांत चित्त होकर मौन ,
करो गुणगान
झंकृत हो सब
तन मन प्राण ,
परम शक्ति
बाल रवि सम
ज्योतिर्मय रूप
प्रकाशित होगा ह्रदय पटल
तमस होगा दूर
प्रकाशित राह,नभ निर्मल l   
खोज पाओगे तुम
अस्तित्व अपनी,
हो तुम्हे ज्ञान....
भक्ति है अँधी 
ज्ञान-चक्षु हीन
आधार है आस्था
किन्तु नहीं है दीन ,
आस्था का साथ
ज्ञान-चक्षु को मिले
अंतर्ध्यान में ...
रब के अनुसन्धान में
हमें परमानंद मिले l 


कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित

13 comments:

  1. satya kee anubhuti karati abhivyakti .very nice sir.

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  2. इश्वर प्राप्ति की खोज तो परम आनद है ...
    बहुत अच्छी रचना ...

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  3. बहुत सुन्दर और सटीक

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  4. सुन्दर प्रस्तुति...

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  5. आध्यात्मिकता के रंग में रंगी बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना..

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति…

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