Sunday 1 February 2015

रिश्तेदार सारे !**



जान जोखिम में डाले वो,,गर आप बचाना चाहो
इल्जाम आप पर लगाते,हर काम में टांग अडाते हो l
बात भले की करता हूँ,,शूल सी चुभती उनको
होंठों को सी ली मैंने,,कहीं उनका घाव गहरा न हो l
प्रतिकुल पूर्वाग्रह से ग्रसित है,, मेरे रिश्तेदार सारे
दोष तो मेरी ही होती है, ,बात कुछ भी हो l
खुद की नाकामी पर,, खुद से निराश है वह
कभी नहीं स्वीकारते,,कहते हैं आप जिम्मेदार हो l
औरों से सेवा कराना खूब आता है उनको 
खुद को समझते मालिक,बाकि नौकर सबको |



कालीपद "प्रसाद "

8 comments:

  1. व्यंग है ऐसे रिश्तेदाओं पर जो ये सब करते हैं ...

    ReplyDelete
  2. लेकिन -
    इनके बिना मै रह नहीं सकता इस बेदर्द ज़माने में...
    मेरी ये मज़बूरी मुझको याद दिलाने आ जाते हैं ...

    ReplyDelete
  3. आज के रिश्तों पर सटीक व्यंग...

    ReplyDelete
  4. Ek dam sateek vyang...sunder rachna

    ReplyDelete
  5. खुद की पता नहीं दूसरों को कहने वाले रिश्तेदार
    सच में संकुचित मानसिकता वाले होते है ! सटीक व्यंग्यरचना है !

    ReplyDelete