जान जोखिम में डाले वो,,गर आप बचाना चाहो
इल्जाम आप पर लगाते,हर काम में टांग अडाते हो l
बात भले की करता हूँ,,शूल सी चुभती उनको
होंठों को सी ली मैंने,,कहीं उनका घाव गहरा न हो l
प्रतिकुल पूर्वाग्रह से ग्रसित है,, मेरे रिश्तेदार सारे
दोष तो मेरी ही होती है, ,बात कुछ भी हो l
खुद की नाकामी पर,, खुद से निराश है वह
कभी नहीं स्वीकारते,,कहते हैं आप जिम्मेदार हो l
औरों से सेवा कराना खूब आता है उनको
खुद को समझते मालिक,बाकि नौकर सबको |
कालीपद "प्रसाद "
व्यंग है ऐसे रिश्तेदाओं पर जो ये सब करते हैं ...
ReplyDeleteलेकिन -
ReplyDeleteइनके बिना मै रह नहीं सकता इस बेदर्द ज़माने में...
मेरी ये मज़बूरी मुझको याद दिलाने आ जाते हैं ...
आज के रिश्तों पर सटीक व्यंग...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर व्यंग्य.
ReplyDeleteनई पोस्ट : रंग दिखाती है जिंदगी
Ek dam sateek vyang...sunder rachna
ReplyDeleteखुद की पता नहीं दूसरों को कहने वाले रिश्तेदार
ReplyDeleteसच में संकुचित मानसिकता वाले होते है ! सटीक व्यंग्यरचना है !
bahut acchi rahna hai .
ReplyDeleteगोस्वामी तुलसीदास
Satik aur sundar rachna
ReplyDelete