कुसुम सा कोमल काया है
भ्रमित हूँ ,परी है कि माया है ?
नजदीक से जब गुज़रता उसके
मन का आँगन सुगंध से भर जाता है l
प्यार क्या है ? नहीं है पता ,किन्तु
दिल हर घड़ी उसका दीदार चाहता है l
एक बार जो छुआ उसको
तन-मन में भूचाल आ गया है l
तितली सी उडती फिरती मन आँगन में
नज़रों में कभी वो ,कभी उसकी परछाईयाँ है l
उसकी नज़र से नज़र जो मिली
चुप थी वो ,पर मेरा दिल हिल गया है l
सलामत रहे वो कयामत तक
राम रहीम से यही मेरी दुआ है l
कालीपद 'प्रसाद'
भ्रमित हूँ ,परी है कि माया है ?
नजदीक से जब गुज़रता उसके
मन का आँगन सुगंध से भर जाता है l
प्यार क्या है ? नहीं है पता ,किन्तु
दिल हर घड़ी उसका दीदार चाहता है l
एक बार जो छुआ उसको
तन-मन में भूचाल आ गया है l
तितली सी उडती फिरती मन आँगन में
नज़रों में कभी वो ,कभी उसकी परछाईयाँ है l
उसकी नज़र से नज़र जो मिली
चुप थी वो ,पर मेरा दिल हिल गया है l
सलामत रहे वो कयामत तक
राम रहीम से यही मेरी दुआ है l
कालीपद 'प्रसाद'
सुंदर ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और भावपूर्ण...
ReplyDeletebahoot sundar rachna
ReplyDeleteजो इतना प्यारा हो उसकी सलामती की दुआ तो अपने आप ही निकलती है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना ...
bahut sundar ...
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