साईं को लेकर बहुत तू तू ,मैं मैं हो चूका है l जहाँ वसुधैव कुटुम्बकम की बात की जाती है वहाँ इस प्रकार की बातें हजम नहीं होती !वास्तव में यह वर्चस्य की लड़ाई है ! सामान्य व्यक्ति का इस लड़ाई से कोई सरोकार नहीं है l इसीपर ये पंक्तियाँ है !
यह लड़ाई न समाज की,
न धर्म की
यह लड़ाई है स्वार्थ
और अहंकार की |
अनादि काल से समाज उनकी बात मानते आये हैं
अनादि काल से समाज उनकी बात मानते आये हैं
आज क्यों मानने लगे बात
शिर्डी के साईं की ?
साईं न तो गुरु है
,न वह गोबिंद है
गुरु-गोविन्द छोड़
साईं की क्यों पूजा की ?
है यह प्रश्न
विवादवाला, विवेक का चुनौतीवाला
राम,कृष्ण,,शंकर के
साथ, साईं की क्यों पूजा की ?
पत्थर,पादप,पशु,पक्षी,साँप-
पूजा के हिमायती
इंसान के पुजारी से
पूछते है,साईं की पूजा क्यों की ?
‘सबके मालिक एक है’
कहते थे साईं सर्वदा
नहीं कहा खुद भगवन
है,यही है महानता साईं की |
किया कल्याण हर
पीड़ित का ,जिसने शरण में आया
शरणार्थी हो गए भक्त
,किया पूजा गुरु-साईं की |
किया अर्पण
अश्रुसिक्त श्रद्धा-सुमन और धन
दिल खोलकर भर दिया
झोली एक फ़क़ीर की |
मानव तो क्या कुबेर
भी ईर्षा से जल गया
देख देखकर अक्षय
खज़ाना एक फ़क़ीर की |
कालीपद "प्रसाद"
सब पैसे का खेल लगता है ... आम आदमी को तो भूख से ही फुर्सत नहीं मिलती ...
ReplyDeletemano to devta nahi to patthar ....
ReplyDeleteआपका आभार !
ReplyDeleteजाकी रही भवन जैसी,
ReplyDeleteप्रभु मूरत तिन्ह देखि तैसी।
बहुत खूब, मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteपत्थर, पादप, पशु-पक्षी सभी को पूजनेवाले पुचछरहे है कि सई की पूजा क्यो? बहुत खूब ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteनई पोस्ट : शब्दों की तलवार