जलाशय सूखे, नहर, कुएं सब
सुख गए
खेतों में पानी नहीं, जमीन
में दरारे पड गए ||1||
दैवी प्रकोप है या, है यह
प्रकृति का रोष
स्वार्थी बने मानव, दिल में
दरार पड़ गए ||२||
बूंद बूंद पानी के लिए, खगवृन्द
तरसते रहे
बिन पानी सबके प्राण, एक
साथ निकल गए ||३||
सुखा पीड़ित घूँट घूँट पानी के
लिए तरसते रहे
लाखों लीटर पानी, एक
क्रिकेट मैंदान पी गए ||४|
‘प्रसाद’ कहे सुनो नेता,
जनता को ना यूँ मारो
तुम्हारे खेल कूद, जनता पर
भारी पड गए ||५||
कालीपद ‘प्रसाद’
© सर्वाधिकार सुरक्षित
आपने लिखा...
ReplyDeleteकुछ लोगों ने ही पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 29/04/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
अंक 287 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।
आभार कुलदीप ठाकुर जी
Deleteआभार कुलदीप ठाकुर जी
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-04-2016) को "मेरा रेडियो कार्यक्रम" (चर्चा अंक-2327) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-04-2016) को "मेरा रेडियो कार्यक्रम" (चर्चा अंक-2327) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार डॉ रूपचन्द्र शास्त्री जी
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