पाप काटने के लिए, नहीं चढ़ाओ भेंट
शुद्ध सरल मन के बिना, मंज़ूर नहीं भेंट |११|
बिकता नहीं खुदा कभी, रुपये हो या माल
लोचन जल के बूंद दो, दर्शन करो कमाल |१२|
बढ़ते है पापी यहाँ, कौन करेगा नाश
हैं पौत्र रक्तबीज के, होयगा खुद विनाश |१३|
चढ़ा भेंट भगवान को, चाहते कटे पाप
घुस से कुछ होता नहीं, कटौती नहीं पाप |१४|
कर्म फल भुगतना यहीं, जानो यही विधान
क्षमा माँग सजदा करो, निष्फल होता दान |१५|
कालीपद'प्रसाद'
जय मां हाटेशवरी...
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इस लिये आप की रचना...
दिनांक 17/06/2016 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (17-06-2016) को "करो रक्त का दान" (चर्चा अंक-2376) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'