Tuesday, 20 September 2016

क्षमा (कविता)

बुद्ध, जैन, सिख, ईशाई, हिन्दू , मुसलमान
सबका मत एक ही है, क्षमा ही महा दान |

हर धर्म मानता है क्षमा, शांति का है मूल
जानकर भी फैलाते नफरत, क्यों करते यह भूल?

त्यागना होगा खुद का स्वार्थ, करके अंगीकार
त्यागना होगा भेद भाव, धन जन का अहंकार |

धर्म के नाम से धंधा कर, बोते हैं विष वेल 
क्षमा-अमृत, ईर्ष्या-विष में नहीं है कोई मेल |

होते सच्चे धर्मात्मा, मन से सुन्दर क्षमाशील
सुदृढ़ विश्वास, प्रवुद्ध, उदार, असीम सहनशील |

उत्तम गुणी परोपकारी जो, होते जगत में क्षमावान
क्षमा मांग कर सबसे, करते सबको क्षमा दान |

होगा जब हर व्यक्ति क्षमावान, शांति होगी देश में
हिंसा, द्वेष, ईर्ष्या का स्थान, नहीं रहेगा ह्रदय में |

सामर्थ्यवान और बुद्धिमान का क्षमा है उत्तम गुण
कायर, कमजोर और बुद्धिहीन होते है सदा निर्गुण |


© कालीपद ‘प्रसाद’

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (21-09-2016) को "एक खत-मोदी जी के नाम" (चर्चा अंक-2472) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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