तेरी’ उल्फत नहीं’ नफ़रत ही’ सही
गर इनायत नहीं, जुल्मत ही’ सही |
गर इनायत नहीं, जुल्मत ही’ सही |
चाहा’ था मैं तेरी संगत ही मिले
तेरी’ संगत नहीं, फुरकत ही’ सही |
तेरी’ संगत नहीं, फुरकत ही’ सही |
इश्क तुमसे किया’, गफलत हो’ गई
छोड़ सब ख्याति, हकारत ही’ सही |
छोड़ सब ख्याति, हकारत ही’ सही |
नाम तो सब हुआ’, बदनाम अभी
मेरी’ वहशत तेरी शोहरत ही’ सही | (गिरह)
मेरी’ वहशत तेरी शोहरत ही’ सही | (गिरह)
पास आना कभी’ होगा नहीं’ किन्तु
मेहरबानी दे ज़ियारत ही’ सही |
मेहरबानी दे ज़ियारत ही’ सही |
जीस्त लम्बी नहीं छोटी है यहाँ
अब इसे मान शिकायत ही’ सही |
अब इसे मान शिकायत ही’ सही |
ये कहावत तो’ सही है जानम
गर असल है नहीं’ हसरत ही’ सही |
गर असल है नहीं’ हसरत ही’ सही |
शब्दार्थ :
जुल्मत =अनुदार, अन्धेरा
फुरकत = विरह, वियोग
गफलत =भूल
हकारत=तिरस्कार ,अपमान
वहशत =भय ,पागलपन
ज़ियारत =दर्शन,दीदार
हसरत = अभिलाषा, इच्छा, कल्पना
जुल्मत =अनुदार, अन्धेरा
फुरकत = विरह, वियोग
गफलत =भूल
हकारत=तिरस्कार ,अपमान
वहशत =भय ,पागलपन
ज़ियारत =दर्शन,दीदार
हसरत = अभिलाषा, इच्छा, कल्पना
कालीपद ‘प्रसाद’
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (06-04-2017) को
ReplyDelete"सबसे दुखी किसान" (चर्चा अंक-2615)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
विक्रमी सम्वत् 2074 की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह ! बहुत खूब पंक्तियाँ आदरणीय
ReplyDeleteवाह ! क्या कहने हैं! बेहतरीन ग़ज़ल ! बहुत खूब आदरणीय।
ReplyDelete