किसी को’ भी’ नेता
पे’ एतिकाद नहीं
प्रयास में असफल लोग
नामुराद नहीं |
किये तमाम मनोहर
करार, सब गए भूल
चुनाव बाद, वचन
रहनुमा को’ याद नहीं |
गरीब सब हुए’
मुहताज़, रहनुमा लखपति
कहा जनाब ने’
सिद्धांत अर्थवाद नहीं |
जिहाद हो या’ को’ई
और, कत्ल धर्म के’ नाम
मतान्ध लोग समझते
हैं’, उग्रवाद नहीं |
कृषक सभी है’ दुखी
दीन, गाँव में बसते
वो’ घोषणाएँ’ भलाई
की’, ग्राम्यवाद नहीं |
हरेक धर्म में’ कुछ
बात काबिले तारीफ़
को’ई भी’ धर्म कभी
होता’ शुन्यवाद नहीं |
को’ई भी’ बात में’
विश्वास जो करे बिना’सोच
इसे कहे सभी’
धर्मान्ध, वुद्धिवाद नहीं |
करे यकीन सभी वाद
में, सही हैं’ सभी
विवेक पर करे’
विश्वास, भूतवाद नहीं|
सभी चुनाव सभा में
बवाल हो जाते
कि धर्म जलसा’ में’ कुछ
फ़ित्ना’-ओ-फसाद नहीं |
शब्दार्थ अर्थवाद= पूंजीवाद
ग्राम्यवाद-गाँव/गाँववासी की बराबर उन्नति के
कार्य
शुन्यवाद=जिसमे
ज्ञान और सत्य का कोई मूल और
वास्तविक आधार न हो
|
भूतवाद=भौतिकवाद
कालीपद 'प्रसाद'
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (08-12-2017) को "मेरी दो पुस्तकों का विमोचन" (चर्चा अंक-2811) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteNice post. Really you are a amazing writer. Thanks for sharing
ReplyDeleteDiwali wishes 2018
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