Thursday 19 April 2018

ग़ज़ल


गाली गलौच में’ सभी बेबाक हो गए
धोये जो’ राजनीति से’, तो पाक हो गए |
कर लो सभी कुकर्म, हो’ चाहे बतात्कार
सत्ता शरण गए है’ अगर, पाक हो गए |
अब रहनुमा अवाम से धोखा न ही करे
मासूम आम लोग भी’ चालाक हो गए |
वादा किया है’ किन्तु निभाया नहीं कभी
अब नेता’ संग आम भी बेबाक हो गए |
उपयोग आपका किया’ नेता चुनाव में
फीर आप उनकी’ नज्र में’ खासाक हो गए |
दर दर कभी भटकते’ थे’ भिक्षा के लिए
मंदिर में बैठ कर अभी वे चाक हो गए |
बलमा के बेवफाई से’ दिल चूर चूर थे
हरदम मचलते’ थे कभी, अब ख़ाक हो गए |
बेहद कठोर थी सज़ा ‘काली’ लगा क़ज़ा
सुनकर सखा अदू, सभी गमनाक हो गए |
शब्दार्थ: – बेबाक= निर्लज्ज, मुँहफट
खासाक =कूड़ा करकट ,पाक=पवित्र
चाक= मोटा, हृष्ट पुष्ट , ख़ाक=मिटटी
मनाक = दुखी , अदू =दुश्मन
कालीपद 'प्रसाद'

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (20-04-2017) को "कहीं बहार तो कहीं चाँद" (चर्चा अंक-2946) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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