मैं पथिक अंतहीन अनजान राह का |
मैं एक पथिक हूँ
ऐसा पथ का
जिसका न कोई शुरू है , न कोई अंत।
सुना है ग्रह ,नक्षत्र ,तारे भी
चल रहे है अनन्त काल से अपने अपने पथ पर
लेकिन उनमें और मुझमें है एक अंतर।
वे थकते नहीं ,सोते नहीं ,चलते ही जाते हैं
अपने अपने निश्चित राह में, निश्चित गति से।
मैं एक राही हूँ अन्जान राह के
अनगिनित राही चल रहे हैं साथ साथ
मैं भीड़ में हूँ या भीड़ मेरे साथ ?
नहीं पता ...
पर मैं चलता जाता हूँ
चलते चलते, थक हारकर
रास्ते में ही सो जाता हूँ
एक गहरी, लम्बी निद्रा में।
न जाने कितने बार सोया
कितने बार जागा
कुछ भी याद नहीं मुझको।
पर एक बात मुझे याद है ...
"हर बार जब सोकर उठता हूँ
अपने को एक नये लिबास में ,
और एक नये रास्ते में पाता हूँ।"
रास्ता नया, मुसाफ़िर नये
यार दोस्त नये ,हमसफ़र नया
उनसे नये वादे करता हूँ ,
चिरकाल साथ रहने की क़सम खाता हूँ ,
पर सब कसमे वादे टूट जाते हैं
सायंकाल में आँख मुदते ही(मृत्यु ),
सब कुछ भूल जाता हूँ।
फिर एक नई राह ,नया सवेरा
करता है इन्तजार मेरा।(पुनर्जन्म )
नहीं पता कब तक चलते जाना है
कितना रास्ता बाकी है ,
कहाँ जाना है ?
कहाँ इसका शुरू,कहाँ इसका अन्त ?
किसी ने न सुना , किसी ने न जाना इसका वृतान्त .
जिस से पूछो "जाना कहाँ है?'
उत्तर मिला "वहीँ जहाँ हमारे पूर्वज गए हैं।"
वहाँ बड़ा कड़ा पहरा है
जागते हुए कोई जा नहीं सकता
चिर निद्रा में सोकर ही जा सकता है।
कालीपद "प्रसाद "
© सर्वाधिकार सुरक्षित
ऐ-पथिक ,तू रुकना नहीं
ReplyDeleteपथ पर कभी थकना नहीं
जीवन यात्रा यूँ ही चलेगी
तू कभी रुकना नहीं ||
सबको जाना है वहीं चीर निद्रा में लीन हो कर ...
ReplyDeleteतब तक तो चलते ही जाना है ...
यात्रा को निरंतर बनाये रखें . अनंत यात्रा अलग है हम आप यहीं हैं आपकी यात्रा सदा मंगलमय बनी रहे .
ReplyDeleteपथिक हूँ....चलते जाना है...निरंतर...अनवरत...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
सादर
अनु
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteहर साँस में एहसास है -बहुत सुन्दर .
ReplyDeleteआप मेरे blog में पधारे aur अपनी रॉय den http://kpk-vichar.blogspot.in
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13-09 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....शब्द रह ज्ञे अनकहे .
यात्रा जिसका न आदि है न अंत बस चलते रहना ही नियति है ...बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeleteजिस से पूछो "जाना कहाँ है?'
ReplyDeleteउत्तर मिला "वहीँ जहाँ हमारे पूर्वज गए हैं।"
वहाँ बड़ा कड़ा पहरा है
जागते हुए कोई जा नहीं सकता
चिर निद्रा में सोकर ही जा सकता है।
जागते हुये जाने के लिये ध्रुव बनना पडता है।
kahavat hai ki jindgi 4 din ki hai lekin sach me ye chaar din bahut bahut lambe hote hain.
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति.
ReplyDeletegajab shahab! kya baat kahi hai! :)
ReplyDeleteजिस से पूछो "जाना कहाँ है?'
ReplyDeleteउत्तर मिला "वहीँ जहाँ हमारे पूर्वज गए हैं।"
वहाँ बड़ा कड़ा पहरा है
जागते हुए कोई जा नहीं सकता
चिर निद्रा में सोकर ही जा सकता है।
हम्मSSSS।
पथिक चलते जाना चलना ही नियति है बहुत सुन्दर..
ReplyDelete