Thursday, 6 September 2012

संवेदनशीलता







लाजवन्ती 


छोटी-छोटी हरी-हरी पत्तियों  की हथेली फैलाकर
हवा के झोको से बलखाती हुई
मानो,
हंस-हंस , हाथ हिलाकर कहती सबको
छुओ ना, छुओ ना, कोई मुझको,
मुहँ छुपा लुंगी हथेली में
अगर छुओगे तुम मुझको। .
मैं नाजुक हूँ,
मैं शर्मीली हूँ ,
मैं संवेदनशील हूँ ,
मैं लाजवन्ती हूँ।



सूरजमुखी



एक  सूरजमुखी का फूल
सूर्य दर्शन में आकूल
सुबह सुबह पूर्व दिशा में
सूरज की प्रतीक्षा में
सहस्र स्वर्ण पंख फैलाकर
अविकल सूर्य की प्रतिबिम्ब  बनकर
खड़ा है लोहित  किरणों की स्वागत में।

पूरब के उदयाचल से पश्चिम के अस्ताचल
सूरजमुखी निहारता सूरज को हर पल ,
सूरज के अस्त होते ही
सूरजमुखी झुक जाता है,
नत मस्तक होता है, दू:ख से
यह प्रकृति का सम्वेदनशीलता नहीं, तो और क्या है  ?

पशु-पक्षी, वृक्ष-लता
सब में है सम्वेदनशीलता ,
मनुष्य संवेदनशीलता में शीर्ष में है
पर उसमे इतना विरोधाभाष क्यों है ?
वह दूसरे का खून का प्यासा क्यों है?
समझ में नहीं आता।

बंदूक से निकली  गोली
किस दिशा में और कहाँ चली ?
किसको घायल किया ,किसको मारा ?
हिन्दु ,मुसलमान ,शिख  या इशाई को .......
नहीं पता ,नहीं पहचानती  वह किसी को
पहचानती केवल उसको---
जो उसे चलाता है और
जो उसके सामने आता है।
चलाने वाले से आदेश लेती  है
सामने वाले का सीना को छलनी करती है।

आतंकी कहता है वह मुसलमान है
मुसलमान के लिए खून बहाता  है ,
उलेमा कहते हैं यह सच नहीं,
निरपराधी का खून  बहाना
मुसलमान का  ईमान नहीं।

ताज , ओबेराय को मिटाना चाहा वे
पर मिटा न पाया अस्तित्व इनकी।

ख़ुद मिट गए वे जिनके लिए
मुहँ फेर लिए  सब आका उनके, और
दो गज जमीं न मिली कब्र के लिए।

ऐ भटके हुए इंसान ! संभल जाओ अभी
मत मानो हमें हिन्दु ,मुस्लिम , सिख ,ईसाई
हम सब है भारत माँ के सन्तान , है भाई-भाई।

तुमने,
परिवार से रिश्तों का महत्व न समझे,  न सही
समाज से सदाचार न सीखा , न सही
धर्म से प्रेम का पाठ न सीखा , न सही
पर इंसानियत को मत भूलो तुम
अपने को' भटके हुए इन्सान' समझो ,आतंकी नहीं
लौटने का मार्ग खुला रहेगा  ,बन्द नहीं।



कालीपद "प्रसाद "

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7 comments:

  1. संवेदनशीलता मार्ग अवरुद्ध नहीं करती ... उसका अस्तित्व उभरकर आता है

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  2. सुन्दर और गहन भाव लिए
    रचनाये....
    ऐ भटके हुए इंसान ! संभल जाओ अभी
    मत मानो हमें हिन्दु ,मुस्लिम , सिख ,ईसाई
    हम सब है भारत माँ के सन्तान , है भाई-भाई।
    यह पंक्ति बहुत सुन्दर और समसामयिक है....

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  3. वाह ... बहुत सुंदर .... लाजवंती और सूरजमुखी दोनों ही पसंद आयीं

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  4. बहुत ही ख़ूबसूरत गीत, सर... अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकार...

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  5. वाह: दोनों ही बहुत खुबसूरत हैं..आभार..

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  6. तुमने,
    परिवार से रिश्तों का महत्व न समझे, न सही
    समाज से सदाचार न सीखा , न सही
    धर्म से प्रेम का पाठ न सीखा , न सही
    पर इंसानियत को मत भूलो तुम
    अपने को' भटके हुए इन्सान' समझो ,आतंकी नहीं
    लौटने का मार्ग खुला रहेगा ,बन्द नहीं।
    beautiful lines with great feelings

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  7. आपकी इस खूबसूरत रचना को पर आपकी पोस्ट की लिंक के साथ iBlogger.in पर summery प्रकाशित की गई है। आपकी रचनाओं को पढ़कर खुशी मिली। http://bit.ly/1Pmj563

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