मथकर शब्द महासागर को ,लाये हैं कुछ नग चुनकर आपके लिए।
इन्हें कंकड़ कहें या हीरे मोती ,हैं सब आपके लिए।
हैं इसमें काँटे , फूल भी हैं ,फूल की ख़ुशबू आपके लिए।
इसमें हैं ईर्षा-द्वेष,झगड़ा-विच्छेद, किन्तु सन्धि सदभाव आपके लिए।
इसमें हैं शत्रु , शत्रुता भी है ,परन्तु मित्र औरमित्रता है आपके लिए।
क्रोध,घमण्ड,दम्भ,अहंकार,अभिमान छोड़,प्यार का सन्देश है आपके लिए।
इसमें हैं करुणा , वीर ,वात्सल्य और है हास-परिहास ,
रौद्र ,विभत्स ,भयानक छोड़ ,केवल भक्ति भाव है आपके लिए।
श्रृंगार ,साज-सज्जा ,माधुर्य और
मीठी मुस्कान, सब हैं आपके लिए।
जूही ,चम्पा ,चमेली फूलों से सजी डाली
और श्रद्धा सुमन-माला है आपके लिए।
घृणा ,भय ,वितृष्णा को दूर कर,प्रेम की ज्योति जलाया है,
घर में, मन में , फैला अँधेरा दूर हो,यही दुआ है आपके लिए।
गरीब से प्रेम के दो बात कर लो ,भक्त हो जायेंगे सदा के लिए,
हज़ार दुआ निकलेगी दिल से उनके , और कृतज्ञता आपके लिए।
संकोच छोड़ ,दृढ़ संकल्प से हाथ बढ़ाओ दोस्ती के लिए
वुद्धि, विवेक ,सुविचार ,सफलता लायेंगे आत्मविश्वास आपके लिए।
कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
प्रसाद साहब ,
ReplyDeleteअत्यंत सदाशयता पूर्ण भावों को लेकर रची गई इस कविता से कौन असहमत हो सकता है भला ?
अस्तु आपकी रचना को सार्थक सृजन कर्म मान रहा हूं !
मैं जिस शब्दों का प्रयोग करना चाहता था, जो बोलना चाहता था, वह सभी कुछ इस में है, तो सिर्फ हार्दिक धन्यवाद, साधुवाद, जीवन के को वयाँ करने के लिए
ReplyDeleteati sundar bhaw
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत भाव इस जिंदगी के
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव लिए रचना..
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति...
:-)
नायाब तोहफे/तोहफों के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteघृणा ,भय ,वितृष्णा को दूर कर,प्रेम की ज्योति जलाया है,
ReplyDeleteघर में, मन में , फैला अँधेरा दूर हो,यही दुआ है आपके लिए।
हृदयस्पर्शी...
bahut behtareen... hridayasparshi..:)
ReplyDeleteइस रचना से मिलकर दिल खूब खुस हुआ और सुक्रिया
ReplyDeleteक्या खूब लिखतें हैं आप
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteनमन आपकी लेखनी को.
सादर
अनु