नारी !
अबला नहीं तुम , सबला हो
शक्ति संचारिणी रूप हो
अपने को पहचानो , तुम राख़ नहीं
राख़ में छुपी आग हो !!
दोस्त !
दुश्मन तुम्हारा नादाँ दोस्त है
तुम चाहो तो, उससे दोस्ती कर लो ,
दोस्ती है गर, तो दुश्मनी की तरह निभा लो ,
दोस्त नादाँ है ,तुम नादानी अपनी छोड़ दो।
मज़ा !
डरने में जो मज़ा, वो डराने में कहाँ ?
भागने में जो मज़ा, वो भगाने में कहाँ ?
मुझको उलझन में डालने वाले मेरे मित
नज़र चुराने में जो मज़ा, वो मिलाने में कहाँ ?
वाह ! वाह!!
इस बेगुनाह दिल पर तुम ने
बेरहमी से नैन का वार किया ,
और जब निकली आह इसकी
तुमने जी भरके वाह ! वाह !! किया।
कालीपद "पसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
हर क्षणिकाओं में विशेषता है
ReplyDeleteहर क्षणिका अपने आप में पूर्ण
ReplyDeleteअच्छी क्षणिकायें ...
ReplyDeleteभागने में जो मज़ा, वो भागने में कहाँ ?
इसमें शायद ... भागने और भगाने आएगा ।
वाह ... बेहतरीन
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