धरती एक है ,
आकाश एक है,
एक समान है सभी इन्सान ,
जात ,पात ,धर्मों में बाँट लिया इसे
नादाँ इन्सान।
धरती का जल एक है
आकाश में वायु एक है ,
सबके लिए समान है दिनमान
टुकडो टुकडो में बाँट दिया इसे
नादाँ इन्सान।
ईश्वर ने बनाया धरती को,
इन्सान ने बाँटकर देश बनाया,
नगर ,शहर ,गाँव हैं, बटवारे का अंजाम।
टुकडो टुकडो में बाँट दिया धरती को
नादाँ इन्सान।
ईश्वर वही, अल्लाह वही है ,
वही है गॉड , वाहेगुरु हमारे
मंदिर ,मस्जिद ,गिरजाघर में
वही है गुरूद्वारे में।
पहनकर रंग-विरंगे चोले
भ्रमित हुए इन्सान,
अलग अलग नामों में बाँट लिया ख़ुदा को
नादाँ इन्सान।
प्रेम ही पूजा है, प्रेम ही भक्ति है ,
प्रेम ही आधार है सृष्टि का ,
प्रेम ही तो मूल मंत्र है
क़ुरान का, बाईबिल का .
सूफ़ी और संत वाणी का ,
जानकर भी अनजान है इन्सान,
टुकडो टुकडो में बाँट दिया इन्सान को
नादाँ इन्सान।
भगवान को बांटा ,इन्सान को बांटा ,
बाँटी धरती के सम्पद सारे ,
तृष्णा न मिटी इन्सान की
बाँटने चले चाँद सितारे,
क्या होगा इस बटवारे का अंजाम
इंसान को बता दे हे भगवान !
अन्धाधुन में बाँट चला सब
नादाँ इन्सान।
रचना : कालीपद "प्रसाद"
© सर्वाधिकार सुरक्षित
lalach men aakar insaan apne dil ko bhi baant deta hai ...bahut acche bhaw ....
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteनादां या शातिर इंसान .... जो खुद बन बैठा भगवान्
ReplyDeleteबढिया रचना
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसादर
अनु