हर मौत पर घडियाली आँसू, ये बहाया करते हैं
आदतन ,मौत पर मुआबज़ा का एलान करते हैं।
तेइस (२३) बच्चे की मौत पर ये गिनते है दो,तीन (२,३)
दो,तीन को देते हैं मुआबज़ा,तेइस नाम दर्ज करते हैं।
शर्म-ओ-हया को कर दिया विदा वर्षों पहले
अब तो चन्द सिक्कों के लिए ,ईमां का सौदा करते हैं।
एहसास शून्य पत्थर का हो गया है उनका दिल
अब मुर्दों से मुआबज़ा का पैसा छिना करते हैं।
चतुर चाल उनकी ,मदत का दिखावा करते हैं
रय्यत राज ना जान जाय ,खौफ़ खाए रहते हैं।
बाढ़ हो या भूकंप हो ,या हो कोई प्राकृतिक त्रासदी
चेहरे पर दुःख ,मन में ख़ुशी लिए चापर से सैर करते हैं।
संकट में फंसे पीड़ित को बचाने ,सेना चापर भेजती है
अफसर, मंत्री,बहू ,सारा परिवार चापर से सैर करते हैं।
बलिहारी नेताजी आपका ,टेढ़ी है आपकी चाल
दिल में भी खोट है ,सीधी बात कभी नहीं करते हैं।
रय्यत=नागरिक ,जनगण
कालिपद "प्रसाद "
© सर्वाधिकार सुरक्षित
बोझ बन गए है, असल आजादी की लड़ाई इनके खिलाफ ही लडनी होगी !
ReplyDeletesahi kaha aapne inke ehsas shoonya ho gaye hain .
ReplyDeleteइन नेताओं की चमड़ी बहुत मोटी है ... इतना तेज चाबुक भी असर नहीं करेगा ...
ReplyDeleteआप सही कह रहे हैं
Deleteसही कहा आप ने इन्हें नेता नहीं लुटेरे कहना चाहिए..
ReplyDeleteलुटेरा कहना भी लुटेरों का अपमान है, इनके लिये तो कोई नया शब्द ही गढना पडेगा.
ReplyDeleteरामराम.
आप सही कह रहे हैं ताऊ रामपुरिया जी !
Deleteबहुत बढ़िया सर जी-
ReplyDeleteआभार
नेताओं के पास संवेदना बची ही नहीं है और निम्नस्तरीय हर अलंकरण इनके लिए कम है !!
ReplyDeleteआप सही कह रहे हैं!
Deleteसीधा और सपाट, लक्ष्य पर।
ReplyDeleteअपना पेट भरने से फुर्सत ही नहीं दूसरों को क्या देंगे..
ReplyDeleteऐसे ही गरीबों की लुटते रहेंगे..
संवेदनहीन मनुष्य है ये लोग..
दुखद ....
करारा हाथ मारा है.
ReplyDeleteयथार्थ और सटीक चित्रण ।
ReplyDeleteसपाट और सार्थक रचना
ReplyDeleteHaqiqat hai ye hamare desh ki
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (28-07-2013) को त्वरित चर्चा डबल मज़ा चर्चा मंच पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका तहे दिल से आभारी हैं मयंक जी !
Deleteनेताओं के बारे में इतना कुछ जानते हुये भी हम उनको नेता मानते हैं ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (29.07.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .
ReplyDeleteह्रदय से आपका आभार नीरज जी !
Deleteमहोदय..
ReplyDelete"सुंदर रूप से हुआ विवेचन..
सत्य मन में है अवचेतन..
कहाँ-कहाँ जायेंगे बाँध इसे..
सस्ता हुआ राष्ट्र-प्रेम-वेतन..!!!"
बहुत सुन्दर लिखा है आपने..
सटीक... पानी सर से ऊपर जा चुका है, देखते हैं जनता की सहनशक्ति कब ख़त्म होती है...
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteबढिया, नेताओं को कुछ भी कह लीजिए, असर नहीं होगा इन पर
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeletesatik rachna....sahi kaha apne
ReplyDeleteबहुत सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक रचना नेताओं पर .....
ReplyDeleteनेता आदत से मजबूर हैं आखिर नेता जो हैं
ReplyDeleteसुन्दर रचना