Tuesday, 11 February 2014

बनो धरती का हमराज !







भानु के विरह में नभ ने
सिसक कर रातभर रोया ,
आँसू गिरा फुल पत्ती पर
रजनी का भी मन भर आया !
ढक कर मुंह काली चादर से
निश्छल,निस्तब्ध आँसू बहाया
पोंछ लिया झट से आँसू सुबह
जब भानु का आगमन हुआ||

रवि -रश्मि फैली चारो ओर
हुआ तब तम का पलायन
शीत ऋतू ,सर्द  सुन्दर सुबह
भक्तजन करे भजन गायन |
चहकती चिड़िया छोड़ी घोंसले
करने भोजन, दाने  की तलाश
मंदिर का आँगन ,खेत खलिहान
उड़ चली ,जहाँ है दानों की आस !

चूजों को खिलाना ,खुद भी खाना
नहीं कोई चिंता संचय का
सुखी है पशु पक्षी इस जगत में
नर दुखी है ,सोचता है कल का |
प्रकृति करती है  पोषण सबका
कल की चिंता छोड़ जिओ आज
प्रकृति कहती शोषण मत करो
सखा बनो, तुम मेरे  हम राज !


कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित


21 comments:

  1. सुन्दर भाव लिए बढिया रचना..

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  2. प्राकृति है तो जीवन है ... और जीवन प्रेरणा देती प्राकृति है ..
    भावमय प्रस्तुति ...

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  3. खूबसूरत भावाभिव्यक्ति
    सादर

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  4. बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति...

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  5. प्रकृति चक्र पुलकित करता है।

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  6. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, धनयबाद .

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  7. बहुत सुन्दर भाव

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  8. भोर होते ही नयी आशाये नयी उम्मीदें ....बहुत बढ़िया

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    1. लाजबाब,सुंदर शब्द भावपूर्ण प्रस्तुति...!
      RECENT POST -: पिता

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  9. आपका आभार शास्त्री जी !

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  10. thank's regard for your information and i like this post ^___^

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  11. प्रात : का जीवन का एक बिम्ब भी फलसफा भी वाह !

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  12. गहन विचारों की प्रस्तुति |
    आशा

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  13. आ० सर बढ़िया प्रस्तुति , धन्यवाद
    Information and solutions in Hindi

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  14. bahut sundar rachana ke sath prbhavi sandesh bhi mila ......sadar aabhar ke sath hi badhai apko .

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  15. बहुत खूब लिखा | बढ़िया

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