गूगल से साभार |
तीन पुत्र और दो कन्याओं के माता पिता
बूढ़े हो गए हैं ,लाठी के सहारे चलते हैं ,
सुबह शाम बड़ी बड़ी आखों में आंसू भरकर
दरवाज़े को अपलक ताकते रहते हैं l
हर सुबह उम्मीद का दीप अनुष्का जला जाती है
संध्या निर्दयता से उसे बुझा जाती है l
न कोई बेटा, न कोई बेटी को फुर्सत है
और न माँ बाप का खबर लेने कोई आते हैं l
पढ़कर बेटे गए कमाने विदेश
व्याहकर बेटियाँ गई साजन के देश l
सब हैं मस्त अपनी अपनी जिंदगी में
अनोपयोगी वस्तु का क्या महत्व है जिंदगी में ?
बुढाबूढी समझते थे उनका जीवन सफल है
बच्चों को पढ़ा लिखाकर पैरों पर खड़ा किया है l
यही होंगे उनके बुढापे का सहारा
जब वे होंगे शक्तिहीन बेसहारा l
इसे किस्मत कहे या दस्तूर नया जमाना
बूढ़े माँ बाप की तकलीफ किसी ने ना जाना l
जब होगये निर्बल ,न कर पाए श्रम
त्याग दिया मोह ,शरण लिया वृद्धाश्रम l
रचना : कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (20-02-2014) को जन्म जन्म की जेल { चर्चा - 1529 } में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार शास्त्री जी !
Deleteबहुत सुंदर !
ReplyDeleteWah bahut sundar prastuti.
ReplyDeleteलोगों को सँभल जाना चाहिए ,बुढ़ापे के लिये अभी से प्रबंध करते चलें ,जिससे कि आत्म-निर्भर बने रहें और इतना मनोबल बना रहे कि अपना जीवन अपनी तरह से जी सकें .
ReplyDeleteलोग सोचते तो यही है परन्तु जब बच्चों की बात आती है तो हर माँ बाप उन पर सर्वस्व न्योछावर कर दे देता है !
Deleteअत्यंत मार्मिक रचना.
ReplyDeleteरामाराम.
बढ़िया प्रस्तुति- -
ReplyDeleteआभार आपका-
behad dukhad ....marmik prastuti
ReplyDeleteसमय को दोष दें या परवरिश में मिले संस्कार के प्रतिदान को
ReplyDeleteसादर
आजकल के बच्चों में अपने माता पिता के प्रति लगाव ही नहीं रहा ...!
ReplyDeleteRECENT POST - आँसुओं की कीमत.
पुत्र पुत्रियों के होते हुये ऐसे रहना पड़े, तो दुर्भाग्य ही है।
ReplyDeleteराह तकती आँखों में सूनापन.....कई वृद्धों की यही कहानी
ReplyDeleteअत्यंत दुःखद !
आभार आपका।
ReplyDeleteहमारे वक्त का संत्रास अकेलापन लिए है यह रचना।
कटु यथार्थ की तिक्तता लिये मर्मस्पर्शी रचना ! ऐसी संतानों का होना ना होना बराबर है ! अत्यंत कष्टप्रद अनुभव है यह माता पिता के लिये !
ReplyDeleteटिप्पणी के लिए आभार आपका साधना जी !
Deleteकटु सत्य को व्यक्त करती रचना।
ReplyDeleteचारो लड़के गए दूर को , अम्मा को घर प्यारा है !
ReplyDeleteसारे गॉँव की माताओं में,लगती निस्संतान वही हैं !
बिलकुल सही कहा आपने सतीश जी !
Deleteमार्मिक अभिव्यक्ति। जिनके पास पैसा है उनका जीवन भी कम कष्ट प्रद नहीं...
ReplyDeleteरोटी पर बैठकर
उड़ गये
सभी लड़के
कमरों में किरायेदार
घर में
बूढ़ा-बुढ़ी रहते हैं।
रोटी कमाने गए लड़के
Deleteमाँ बाप को किरायेदार के भरोसे छोडके !
आभार !
ऐसी इच है दुनिया बोले तो .बढ़िया प्रस्तुति है सरजी मार्मिक मन को चेताती
ReplyDeleteसर जी टिप्पणी के लिए आभार !
Deleteआज का सच.. काश, समझ सकते सब..!!!
ReplyDeleteमन को झकझोरती रचना!!
शानदार प्रस्तुति |
ReplyDeleteआशा
now this is the reality of our society .
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