Thursday, 20 February 2014

किस्मत कहे या ........


गूगल से साभार



तीन पुत्र और दो कन्याओं के माता पिता

बूढ़े हो गए हैं ,लाठी के सहारे चलते हैं ,

सुबह शाम बड़ी बड़ी आखों में आंसू भरकर

दरवाज़े को अपलक ताकते रहते हैं l

हर सुबह उम्मीद का दीप अनुष्का जला जाती है

संध्या निर्दयता से उसे बुझा जाती है l

न कोई बेटा, न कोई बेटी को फुर्सत है

और न माँ बाप का खबर लेने कोई आते हैं l

पढ़कर बेटे गए कमाने विदेश

व्याहकर बेटियाँ गई साजन के देश l

सब हैं मस्त अपनी  अपनी जिंदगी में

अनोपयोगी वस्तु का क्या महत्व है जिंदगी में ?

बुढाबूढी समझते थे उनका जीवन सफल है

बच्चों को पढ़ा लिखाकर पैरों पर खड़ा किया है l

यही होंगे उनके बुढापे का सहारा

जब वे  होंगे शक्तिहीन बेसहारा l

इसे किस्मत कहे या दस्तूर नया जमाना

बूढ़े माँ बाप की तकलीफ किसी ने ना जाना l

जब होगये निर्बल ,न कर पाए श्रम

त्याग दिया मोह ,शरण लिया वृद्धाश्रम l 

 रचना : कालीपद "प्रसाद "
       सर्वाधिकार सुरक्षित

26 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (20-02-2014) को जन्म जन्म की जेल { चर्चा - 1529 } में "अद्यतन लिंक" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. लोगों को सँभल जाना चाहिए ,बुढ़ापे के लिये अभी से प्रबंध करते चलें ,जिससे कि आत्म-निर्भर बने रहें और इतना मनोबल बना रहे कि अपना जीवन अपनी तरह से जी सकें .

    ReplyDelete
    Replies
    1. लोग सोचते तो यही है परन्तु जब बच्चों की बात आती है तो हर माँ बाप उन पर सर्वस्व न्योछावर कर दे देता है !

      Delete
  3. अत्यंत मार्मिक रचना.

    रामाराम.

    ReplyDelete
  4. बढ़िया प्रस्तुति- -
    आभार आपका-

    ReplyDelete
  5. behad dukhad ....marmik prastuti

    ReplyDelete
  6. समय को दोष दें या परवरिश में मिले संस्कार के प्रतिदान को
    सादर

    ReplyDelete
  7. आजकल के बच्चों में अपने माता पिता के प्रति लगाव ही नहीं रहा ...!

    RECENT POST - आँसुओं की कीमत.

    ReplyDelete
  8. पुत्र पुत्रियों के होते हुये ऐसे रहना पड़े, तो दुर्भाग्य ही है।

    ReplyDelete
  9. राह तकती आँखों में सूनापन.....कई वृद्धों की यही कहानी
    अत्यंत दुःखद !

    ReplyDelete
  10. आभार आपका।

    हमारे वक्त का संत्रास अकेलापन लिए है यह रचना।

    ReplyDelete
  11. कटु यथार्थ की तिक्तता लिये मर्मस्पर्शी रचना ! ऐसी संतानों का होना ना होना बराबर है ! अत्यंत कष्टप्रद अनुभव है यह माता पिता के लिये !

    ReplyDelete
    Replies
    1. टिप्पणी के लिए आभार आपका साधना जी !

      Delete
  12. कटु सत्य को व्यक्त करती रचना।

    ReplyDelete
  13. चारो लड़के गए दूर को , अम्मा को घर प्यारा है !
    सारे गॉँव की माताओं में,लगती निस्संतान वही हैं !

    ReplyDelete
    Replies
    1. बिलकुल सही कहा आपने सतीश जी !

      Delete
  14. मार्मिक अभिव्यक्ति। जिनके पास पैसा है उनका जीवन भी कम कष्ट प्रद नहीं...

    रोटी पर बैठकर
    उड़ गये
    सभी लड़के

    कमरों में किरायेदार
    घर में
    बूढ़ा-बुढ़ी रहते हैं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. रोटी कमाने गए लड़के
      माँ बाप को किरायेदार के भरोसे छोडके !
      आभार !

      Delete
  15. ऐसी इच है दुनिया बोले तो .बढ़िया प्रस्तुति है सरजी मार्मिक मन को चेताती

    ReplyDelete
    Replies
    1. सर जी टिप्पणी के लिए आभार !

      Delete
  16. आज का सच.. काश, समझ सकते सब..!!!

    मन को झकझोरती रचना!!

    ReplyDelete
  17. शानदार प्रस्तुति |
    आशा

    ReplyDelete
  18. now this is the reality of our society .

    ReplyDelete