गर नेता भ्रष्टाचार
मुक्त होता ,भारत एक विकसित देश होता,
नेता गर
इमानदार होता ,कर्मचारी भी नेताओं से खौप खाता l
लुट का
नोट नेता रखता है,बक्से,बोरे,गाडी और विदेशी बैंको में
बिस्तर
के नीचे,निवेशकर बेनामी जायदाद और सोने के गहने में l
सौ कदम क्या चले अभी अभी ,घर से निकलकर बरखुरदार
,
करने लगे गुणगान खुद,अपनी चाल चलन और संस्कार पर l
जब से बैठा है सिंहासन पर,कालाधन का रंग हो गया
सफ़ेद
अंगूर खट्टा है या मीठा,लग गया है पता,दोनों में
क्या है भेद l
डंका पीटना छोड़कर गर,सब नेता काम पर लगाए ध्यान
जनता का संकट दूर होगा, भारत का होगा कुछ कल्याण
l
संसार में न तुम्हारा कोई मित्र है,न कोई शत्रु
है जन्मजात
शत्रु और मित्र बनाते उन्हें ,तुम्हारे अपने
विचार और बात l
कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित
bahut sundar ..
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (31-01-2015) को "नये बहाने लिखने के..." (चर्चा-1875) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सार्थक प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (31-01-2015) को "नये बहाने लिखने के..." (चर्चा-1875) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपका आभार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी
ReplyDeleteभ्रष्टाचार का कैंसर है यहाँ .......लाइलाज
ReplyDeleteयही तो समस्या है ... भारत निर्माण की नहीं सब अपने निर्माण की ही सोचते हैं ...
ReplyDeleteबहुत सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteनेता ईमानदारी को ऐसे ही खा गए हैं जैसे लालू ने चारा खाया था .... सुन्दर शब्द रचना
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in