Thursday, 23 April 2015

काव्य सौरभ (समीक्षा ) --द्वारा -कालीपद "प्रसाद "





मित्रों ,
आपको सूचित करते हुए प्रसन्नता हो रही है की मेरी कवितायों का संग्रह “काव्य सौरभ “ छपकर तैयार हो गया है l .कुछ ही दिनों में BookGanga.com में ऑन लाइन उपलब्ध होगा l .१०४ पेज की यह पुस्तक की कीमत केवल रु ९६ है l .पुस्तक डाक –पोस्ट द्वारा ऑथर से भी प्राप्त किया जा सकता है.l  पुस्तक में सामिल कुछ कविताओं के अंश आपके अवलोकन हेतु नीचे प्रस्तुत हैं l   
सरस्वती वन्दना
हे  माँ वीणा वादिनी शारदे !
शब्द ,भाव, भावना का वर दे ,
शब्द सुकोमल मन-भावन हो ,  
भाव -गम्भीर सद्-भावना   हो
मानव मन के कलुष दूर कर दे
हे  माँ वीणा वादिनी शारदे ! तू वर दे!!
                          नारी के गुण (द्वन्द)

                                  कोमलता ,धैर्य और सहनशीलता
का प्रतिक हूँ मैं ,
कर सकती हूँ असाध्य साधन
अवोध मानवों को सिखलाती  हूँ।
  
प्रेम .....
"प्रेम "  अदृश्य है ,पुष्प गंध जैसा भर देता है मन
एक एहसास है ,एक अनुभूति है , कहते हैं ज्ञानीजन।

वसीयत (पर्यावरण )

               हे मानव !
लिख दो वसीयत अपनी संतति के नाम
न गज ,न बाजी ,न चाँदी ,न कंचन
केवल हरित धरती ,स्वच्छ जल-वायु
और स्वच्छ पर्यावरण !!!

 नारी की पीड़ा (दामिनी )

देवी बनाकर किया पूजा ,                
बनाकर पत्थर,मिटटी की मूरत ,
बना दिया गूंगी, बहरी ,अंधी,
अबला और अनपढ़ मुरख।

पिंजड़े के पंछी

  इस पिंजड़े का चंचल पंछी 
                                       उडता है केवल एक बार,
     पंख फैली उड़ा  जो पंछी 
                                          लौटकर नहीं आता दो बार।

तुम किसान के भाग्य विधाता
किसान के भाग्य-विधाता कोई है ....
तो वह तुम ही हो, हे जलधर!
किसान उगाता फसल ,पेट भरने मानव का
किसान आश्रित है तुम पर।

भारत की माताएं
इंसान हो , समाज हो , या हो कोई शास्त्र,
ललकारो उन्हें ! करो विद्रोह !! उठाओ शस्त्र!!!
तोड़ दो कन्या-दलित  रिवाज़  की  बीमार  जर्जर  जंजीर,
खोल दो सब बंद दरवाज़े ,आने दो सुवासित स्वच्छ समीर।
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 बेटी

बहू है नयी ,जगह नई है ,नया है घरद्वार
हँसकर करो स्वागत उसका,लगे उसको अपना घर
एक घर छोड़कर ,दुसरे घर में बहू बनकर आती है
सरबत में शक्कर ज्यों घुलकर मिठास वह फैलाती है|

माँ है धरती

आओ करे प्रण,सब मिलकर आज
करेंगे रक्षा धरती की, हरयाली की
अपने जीवनकाल में रोपकर दस पौधे
अहसान उतारेंगे हम धरती माँ की |

ये कुछ झलकियाँ है अलग अलग कविताओं  से l आशा ही नहीं मुझे पूर्ण विश्वास है कि  प्रत्येक कविता में निहित केंट्रीय भाव आपके भावुक एवं समेदंनशील मन को छूने मे समर्थ होगा l किसी कविता को पढकर आप उत्तेजित हो जायेंगे तो किसी को पढकर शांति से हौले हौले मुस्कुराएंगे और कभी गंभीर भी हो जायेंगे ll एक बार पढ कर देखिये .....आनंद आयगा l

आपका

कालीपद ‘प्रसाद’

मोब: ९६५७९२७९३१ /९४२३२४५०८६ 
पुणे



15 comments:

  1. बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ !

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  2. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24.04.2015) को "आँखों की भाषा" (चर्चा अंक-1955)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

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    1. आपका आभार राजेंद्र कुमार जी !

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    2. आपका आभार राजेंद्र कुमार जी !

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  3. हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !

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  4. बधाई और शुभकामनाएं ....

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  5. बहुत बहुत बधाई आप को ....सादर

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  6. बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें कालीपद जी ...

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  7. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  8. शुभकामनाएं एवम बधाई स्वीकार हो.
    काव्यसम्ग्रह की प्रतीक्षा है.

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  9. बढ़िया प्रतीक और भाव चित्र हैं संग्रह में बधाई .पर्यावरण वसीयत बेहद पसंद आई .

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  10. बढ़िया प्रतीक और भाव चित्र हैं संग्रह में बधाई .पर्यावरण वसीयत बेहद पसंद आई .

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  11. आपको शुभकामनाये

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