Tuesday, 5 May 2015

वही होता है जो निर्णायक चाहता है !




कुटिल काल-कर्कट ने
कुतर कुतर काटकर
हाड़-माँस के इस ढाँचे को
बनाया खोखला काया को,
एक खंडहर  
जर्जर घर,प्रकम्पित थर-थर
गिरने को आतुर
बे-घर कर आत्मा को l
जीवन के दिन, कम हुए प्रतिदिन
शनै: शनै: सब छुट्ता गया ,
फिर आया वो दिन
जीवन का शेष दिन
जब आत्मा ने भी 
शरीर को छोड़ दिया l
कैसी है देव लीला
प्राणी की इह लीला
समझ न पाये नर
क्या है रहस्य इसका l
धरती से आसमान तक
उससे भी परे अन्तरिक्ष तक
खोजा है सब जगह
पता नहीं लगा पाया रब का l
समझ में कुछ आता है
वक्त ही सृजक है
वक्त ही संहारक है
जीवन और मृत्यु का
वही निर्णायक है  l
कितना भी जतन करो
दुआ और दवा करो  
होता ठीक वही है  
निर्णायक जो चाहता है l


कालीपद "प्रसाद"

8 comments:

  1. सार्थक सुन्दर गहन प्रस्तुति ! बहुत बढ़िया !

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  2. सार्थक रचना

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  3. बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...

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  4. sach kaha....sarthak prastuti

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  5. सहमत,
    कविता अच्छी लगी

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  6. सत्य लिखा है .. गहरा सत्य ...

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