पत्नी एक इंसान है ,उसे देवी मत बनाइये
पति भी हाड़-मांस का
है,उसे देव न बनाइये |
इंसान है तो उसे
इंसान ही रहने दीजिये
न उसे राक्षस, न
दानव ,न देव बनाइये |
देवी बनाकर पूजा
नारी को, फिर किया छल
परदे के पीछे उसको,
शोषण का शिकार न बनाइये |
पुत्र होना या
पुत्री होना ,इसका जिम्मेदार है पुरुष
दकियानुस बनकर
,निर्दोष औरत को दोषी न बनाइये |
गर दोष नारी में है
,दोष पुरुष में भी है
दोषारोपण में जीवन
को नरक न बनाइये |
कोई नहीं पूर्ण इस जग में,नारी हो या पुरुष हो
पूर्णता के चक्कर में ,जीवन को दुखी न बनाइये |
कालीपद 'प्रसाद'
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteसच ही है कोई किसी में अक्षम तो किसी में सक्षम जरुर होगा आभार
Deleteसच ही है कोई किसी में अक्षम तो किसी में सक्षम जरुर होगा आभार
Deleteबहुत ख़ूब
ReplyDeleteबहुत सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत खूब ... व्यंग की तीखी धार सामान रचना ...
ReplyDeleteतीखी धार
ReplyDelete