जैसे नेताओं के वादे पर
कोई भरोसा नहीं,
मेघ तो आया यहाँ ,पर
मेघ में भी पानी नहीं |
नेता ,पैसा चमचों पर खरचता है
जरुरतमंदों पर नहीं ,
वर्षा वहां हो रही है
जहां उसकी जरुरत नही |
बादल फटा पहाड़ों में
समतल के गाँव जलमग्न हुए,
पहाड़ी नदियां उफान पर हैं
किनारों पर सब तबाह हुए |
त्राहि त्राहि पुकार रही जनता
शासक अभी सो रहा है ,
खोकर सबकुछ जल प्रलय में
नंगे बदन लोग ,भूख से तड़प रहे हैं |
जन कष्ट दिखा-दिखा कर, हर चेनेल
अपना अपना टी आर पी बढ़ा रहा है |
देर से जगी देश की सरकार
घोषणाओं की लगा दी अम्बार
किन्तु पीड़ित को मदत कहाँ ?
वह तो हाथ फैला खड़ा है ,
किन्तु दलाल के चहरे पर
मंद मंद मुस्कान है |
सरकारी गोदाम का माल से
नेताओं चालित एन जी ओ के
गोदाम भर रहे हैं |
इस देश की हालत क्या होगी यारो
जहां काम नहीं ,
घोषणाओं से सरकार चलती है,
देश सेवा के नाम से नेता
अपनी तिजोरी भरते हैं |
कालीपद "प्रसाद"
सर्वाधिकार सुरक्षित
लिखते रहो.. जागते रहो..जगाते रहो.. :)
ReplyDeleteये हालात तो शुरू से ही हैं देश के ... कवी का काम सजग करना है जो अप कर रहे हैं ...
ReplyDeleteहालात जरूर बदलेंगे क्योंकि साहित्य के शूरमाओं ने अब ठान लिया है..अति उत्तम।
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