यह तो तय था
जिस दिन हम मिले थे
उससे बहुत पहले
यह निश्चित हो गया था
एक दिन हम मिलेंगे और
एक दिन तुम
मुझे छोड़ जाओगी
या मैं तुम्हे छोड़ जाउंगा ,
कौन किसको छोड़ जायगा
यह पता नहीं था l
इस कटु सत्य को
हम जानते थे ,
फिर भी हँसते थे,खेलते थे
साथ मिलकर
एक दुसरे का
सहारा बनकर आगे कदम बढाते
थे l
जीवन के सुख-दुःख के
हर एक पल को
एहसास करने की
कोशिश करते थे ,
कभी लड़ते थे ,झगड़ते थे
फिर मिलकर बतियाते थे ,
पर हमें पता नहीं था
परछाईं की भांति
काल हमारे पीछे खड़े थे l
कुछ काम इस जनम में
मुझे दिया था ईश्वर ने
साझा करना था तुमसे
किया मैंने,
जितना बन पड़ा मुझसे l
जितना बन पड़ा मुझसे l
इंसान गलतियों का पुतला है
गलतियाँ मैंने की
गलतियाँ तुमने की ,
दुखी हूँ मैं
सज़ा केवल तुमको मिली l
इसे सज़ा कहूँ या
अनन्त यात्रा की तैयारी
कहूँ ?
एक प्रश्न सदा उठता है मेरे
मन में ,
क्या हम साथी रहे किसी और जनम में ?
यदि नहीं......
तो इतना लगाओ क्यों है ?
स्मृति साथ नहीं दे रही है
विछुडने के सोच से
आंसू नही थम रही है l
नहीं पता मुझे
आत्मा होती है या नहीं
अगर होती है ....
तो तुम्हारी भी होगी
उसका भी एक आशियाना होगा *
वादा करता हूँ
मेंरी आत्मा,तुम्हारी आत्मा
से
उस आशियाना में मिलेगी lकालीपद 'प्रसाद '
© सर्वाधिकार सुरक्षित
<a href="http://www.manojbijnori12.blogspot.in>डायनामिक </a>पर आपका स्वागत है
ReplyDeleteयथार्थ को बताती सुंदर रचना !
कटु सत्य
डायनामिक पर आपका स्वागत है ,पहले कमेंट में लिंक टाइप करने में गलती हो गयी माफ़ी चाहुगा !
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज बृहस्रपतिवार (09-07-2015) को "माय चॉइस-सखी सी लगने लगी हो.." (चर्चा अंक-2031) (चर्चा अंक- 2031) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत सुंदर और सत्य .
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