नंदन प्यारा था
दुलारा था, सहारा न हुआ
मेरा खुद का ही
जलाया दिया अपना न हुआ |
रौशनी फ़ैल गयी चारो
तरफ लेकिन फिर
घर अँधेरा था अँधेरा
है उजाला न हुआ |
देखते रह गए बेसुध नसे
में मदिरा बिना
चाह कर भी उन्हें
फ़रियाद सुनाना न हुआ |
दिल नहीं तुझको दिखा
सकता जलाया तू ने
ख़ाक में मिल गया वो
छार किसी का न हुआ |
निकले थे वज्म से बेआबरू
होकर कभी वो
बेरुखी तेरी वजह थी
कि दिवाना न हुआ |
सिर्फ मैं ही नहीं,
हर एक दिवाना जो बना
दर्द तुमने दिया
उसको तो भुलाना न हुआ |
याद करते थे सभी
तुझको, दुलारी थी तू
दिल का अरमान हमारा कभी पूरा न हुआ |कालीपद ‘प्रसाद’
No comments:
Post a Comment