Saturday, 21 January 2017

ग़ज़ल





नंदन प्यारा था दुलारा था, सहारा न हुआ
मेरा खुद का ही जलाया दिया अपना न हुआ |

रौशनी फ़ैल गयी चारो तरफ लेकिन फिर
घर अँधेरा था अँधेरा है उजाला न हुआ |

देखते रह गए बेसुध नसे में मदिरा बिना  
चाह कर भी उन्हें फ़रियाद सुनाना न हुआ |

दिल नहीं तुझको दिखा सकता जलाया तू ने
ख़ाक में मिल गया वो छार किसी का न हुआ |

निकले थे वज्म से बेआबरू होकर कभी वो
बेरुखी तेरी वजह थी कि दिवाना न हुआ |

सिर्फ मैं ही नहीं, हर एक दिवाना जो बना    
दर्द तुमने दिया उसको तो भुलाना न हुआ |

याद करते थे सभी तुझको, दुलारी थी तू
दिल का अरमान हमारा कभी पूरा न हुआ |

कालीपद ‘प्रसाद’

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