Friday 24 August 2018

ग़ज़ल

दुनिया सभी देखी यहाँ, इसके सिवा देखा कहाँ
ए जिंदगी जग में कटी, जग छोड़ अब जाना कहाँ ?

अज्ञान है इंसान मणि को मानते भगवान वह
कंकड़ नगीना को पहन भगवान को पाया कहाँ ?

भगवान का लेकर सहारा जो मचाया लूट है
बदनाम जो रब को किया, इंसान वो रोया कहाँ ?

विश्वास करते बारहा, डरकर अँधेरे से सभी
ईश्वर कहीं हैं मानते जाने नहीं डेरा कहाँ ?

वर्षों से’ हम करते रहे, अच्छे दिनों का इंतज़ार
एकेक कर सम्बत गए अच्छा अभी आया कहाँ ?

भोली सभी जनता ने’ की विश्वास पंडित को यहाँ
सब दान ईश्वर वास्ते, रब ने लिए देखा कहाँ ?

पण्डे पुजारी सब को’ई कहते मुहब्बत से रहो
पण्डे पुजारी को सभी कुचला हुआ प्यारा कहाँ ?

सूरज तपन पातक ज्वलन, ’काली’ हुआ बेहाल जब  
वो ढूंढ़ता रब की कृपा, ठंडक भरा साया कहाँ ?

कालीपद 'प्रसाद'

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