दुनिया सभी देखी
यहाँ, इसके सिवा देखा कहाँ
ए जिंदगी जग में
कटी, जग छोड़ अब जाना कहाँ ?
अज्ञान है इंसान मणि
को मानते भगवान वह 
कंकड़ नगीना को पहन
भगवान को पाया कहाँ ?
भगवान का लेकर सहारा
जो मचाया लूट है 
बदनाम जो रब को
किया, इंसान वो रोया कहाँ ?
विश्वास करते बारहा,
डरकर अँधेरे से सभी 
ईश्वर कहीं हैं
मानते जाने नहीं डेरा कहाँ ?
वर्षों से’ हम करते
रहे, अच्छे दिनों का इंतज़ार 
एकेक कर सम्बत गए
अच्छा अभी आया कहाँ ?
भोली सभी जनता ने’
की विश्वास पंडित को यहाँ 
सब दान ईश्वर
वास्ते, रब ने लिए देखा कहाँ ?
पण्डे पुजारी सब
को’ई कहते मुहब्बत से रहो 
पण्डे पुजारी को सभी
कुचला हुआ प्यारा कहाँ ? 
सूरज तपन पातक
ज्वलन, ’काली’ हुआ बेहाल जब  
वो ढूंढ़ता रब की कृपा, ठंडक भरा साया कहाँ ?कालीपद 'प्रसाद'
सुन्दर
ReplyDelete