Tuesday, 28 August 2018

हमारा लोक तंत्र


संविधान है सबके ऊपर, आकाएं देश चलाते हैं
शासन, संसद,न्यायालय ही, सब मसलों को सुलझाते हैं |
लोक तंत्र में लोक है मुख्य, लोग ही तंत्र को लाते हैं
भारत में दशा उलटी हुई, तंत्र जनता को नचाते है |
जन नेता है भगवान यहाँ, गीत यही वे खुद गाते हैं
जनता वोट से जीतकर फिर, जनता को खूब सताते हैं |
झूठे वादे जुमलेबाजी, करने में वे न लजाते हैं
जनता को सिर्फ आधा पेट, खुद भरपेट सदा खाते हैं |
जात-पात भेद-भाव वाली, नीति सब आदम पुरानी है
संविधान ने प्रतिबन्ध किया, इनको यही परेशानी है |
अमीर गरीब में बाँट दिया, लडते हैं सब भाई भाई
यहाँ बेदर्द सब हाकिम है, नहीं न्याय की अब सुनवाई |
नीयत नहीं सही नेता का, चिंता केवल अपनी कुर्सी
मज़बूरी में करते रहते, शहीद के घर मातम-पुरसी* |
और कहे क्या देश हालात, जनता भी अभी सो रही है
‘जागो,उठो’ बुलाया ‘काली’, धीरे जनता जाग रही है |
*घर जाकर संवेदना जताना
कालीपद 'प्रसाद'

नोट : मित्रो  बहुत दिनों से मैं पाठक के कमेन्ट का उत्तर नहीं दे पा रहा हूँ क्योकि वह पब्लिश नहीं होता है  | मैंने गूगल अकाउंट , URL से कोशिश की फिर भी नहीं जा रहा है  | क्या आप मदत कर सकते है ? इस कमेन्ट बॉक्स में लिख दीजिये | सादर |

2 comments:

  1. @भारत में दशा.............विडंबना :-(

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (29-08-2018) को "कुछ दिन मुझको जी लेने दे" (चर्चा अंक-3078) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

    ReplyDelete