Wednesday 3 October 2018

ग़ज़ल

दोषी’ हूँ पर न दे सजा दिलबर
तेरी’ नाराजगी कज़ा दिलबर |
कौन किस से कहाँ मिले क्या’ पता
फक्त तौफीक तू मिला दिलबर |
प्यार में तो वफा किया मैंने
बावफा माँगता वफा दिलबर |
प्यार में सिंधु तैरता रहा हूँ
साथ अब तैर के बता दिलबर |
मर्ज़ अब बढ़ गया सनम मेरे
चाहिए अब दुआ, दवा दिलबर |
क्यों खफा है जरा बता मुझको
हिज्र की आग को बुझा दिलबर |
सरफिरा किंतु बेवफा नहीं’ हूँ
नाखुदा मेरा’ तू खुदा दिलबर |
यह जमाना है दो मुँहा ,यही’ सच
तू सचाई को आजमा दिलबर |
चोट 'काली' यदा कदा दी मुझे
भुला दी मैं गले लगा दिलबर |
तौफीक =दैव योग
हिज्र -वियोग
नाखुदा =कर्ण धार , मल्लाह
©स्वरचित , सर्व अधिकार सुरक्षित
कालीपद 'प्रसाद'

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