Thursday, 11 October 2018

देवी -प्रर्थना - गीतिका


१२२  १२२  १२२  १२२
करो कुछ कृपा, दींन  के चौक आए
सभी दीन  इक बार,आशीष पाए |

नहीं भक्ति, श्रद्धा,  तुम्ही कुछ बताओ
सभी संग आराधना गीत गाए ? 
            
भले भक्ति गाढ़ा न, विश्वास तो है
तुम्हें सर्वदा मातु हम शीश झुकाए |

सदा ख्याल रखती तूपीड़ित जनों का
कभी रूपअपना भवानी दिखाएं |

दुखों का महा सिंधु संसार तेरा
मनोरोग औ काय पीड़ा भगाए |

नहीं जानते आवरण जिसमें ढके तुम
सती, भगवती, पार्वती रूप भाये  |

नवीन और नव रूप दुर्गा व गौरी
कृपा मातु  का प्रेम सरिता बहाए |

कालीपद 'प्रसाद
©स्वरचित , सर्व अधिकार सुरक्षित

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (12-10-2018) को "सियासत के भिखारी" (चर्चा अंक-3122) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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