Saturday, 26 October 2019

ग़ज़ल


२१२२ १२१२ २२ (११२)
जीत पर मित्र वाह वाह न की
तोहफे पर अदू ने’ डाह न की |
मुश्किलों से नजात चाह न की
जीस्त में कोई’ भी गुनाह न की |
छोड़ने का वो’ फैसला उसका
खुद ब खुद सब किया, सलाह न की |
प्यार तो था नहीं कभी मुझसे
उसने’ अच्छा किया निबाह न की |
बेवफा तो नहीं, न विश्वासी
पहले उसने कभी अगाह न की |
जल प्रदूषित कभी न हो. गर
गंगा’ में शव कभी प्रवाह न की |
भौंरे’ संसार में बहुत ‘काली’
जिंदगी में कभी विवाह न की |
कालीपद 'प्रसाद'

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