गीत –दिवाली मात्रा (१०,१६)
दीपों का उत्सव, घर घर झिलमिल अब दीप जले
इस दिवाली में, एक दीप झोपडी में जले |
कोने कोने में, महलों के, फ़ैल गया प्रकाश
धनी रहनुमा के, घरों में है, लक्ष्मी का बास |
जगमगाते महल पास, अँधेरी झोंपड़ी मिले
इस दिवाली में, एक दीप झोंपडी में जले |
नया वस्त्र आवृत, नया आभूषण तनपर सजे
घर आँगन मंडप, में हर कोई लक्षी पूजे
माँ लक्ष्मी तुम अब, महल से उतर अहले–गहले
झुग्गी में आओ, एक दीप झोंपड़ी में जले |
अभागा देश के, स्वार्थी आकाओं धीर धरो
गरीब ने तुमको चुनकर भेजा, कुछ भला करो
भूखे हैं सब, यहाँ सबके सब हैं दिल जले
इस दिवाली में, एक दीप झोपडी में जले |
कालीपद 'प्रसाद'
आशा का गीत ... दीपों के पर्व में इससे सुन्दर चाह क्या होगी ...
ReplyDeleteबहुत बधाई आपको दीप पर्व की ...
दीप ही आशा जगाता है और आशा गरीबों में में भी होती है | सादर आभार आ दिगम्बार नासवा जी
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-10-2019) को "भइया-दोयज पर्व" (चर्चा अंक- 3503) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
-- दीपावली के पंच पर्वों की शृंखला में गोवर्धनपूजा की
हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मेरी रचना को "भैया दोयज पर्व "में शामिल करने के लिए सादर आभार आ डाक्टर रूप चन्द्र शास्त्री जी
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