२१२२ २१२२ २१२
फेरकर मुँह, मेरे वो दिलवर चले
मेरे दिल पर तीक्ष्ण, वो खंजर
चले |
लोग तो मरते रहे हैं भूख से
आँख दोनों बंद कर रहबर चले |
आगे’ पीछे दायें’ बाएं क्यों
चले
राह सीधी, टेढ़े’ क्यों अख्तर* चले
|* सितारे
वो नहीं चलते कभी पैदल यहाँ
गर नफा हो, लाभ में बे-पर* चले |* बिना पैर
वक्त पर मिलते नहीं रहबर* यहाँ * नेता
वे चुनावी दौर में दर दर चले |
हो गया आकुल सनम अब प्यार में
इश्क अपना काम नस नस कर चले |
रहनुमा वादे निभाया क्या कभी
सब यहाँ से वोट लेकर घर चले |
कालीपद 'प्रसाद'
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