Sunday 8 December 2019

ग़ज़ल


२१२२ २१२२ २१२
फेरकर मुँह, मेरे वो दिलवर चले
मेरे दिल पर तीक्ष्ण, वो खंजर चले |

लोग तो मरते रहे हैं भूख से
आँख दोनों बंद कर रहबर चले |

आगे’ पीछे दायें’ बाएं क्यों चले
राह सीधी, टेढ़े’ क्यों अख्तर* चले |* सितारे 

वो नहीं चलते कभी पैदल यहाँ
गर नफा हो, लाभ में बे-पर* चले |* बिना पैर 

वक्त पर मिलते नहीं रहबर* यहाँ * नेता 
वे चुनावी दौर में दर दर चले |

हो गया आकुल सनम अब प्यार में
इश्क अपना काम नस नस कर चले |

रहनुमा वादे निभाया क्या कभी
सब यहाँ से वोट लेकर घर चले |

कालीपद 'प्रसाद'


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